Natasha Dalal OTT Debut: पति Varun Dhawan को एक्टिंग में टक्कर देने आ रही हैं नताशा दलाल, इस शो से ओटीटी पर करेंगी डेब्यू

वरुण धवन (Varun Dhawan) को टक्कर देने के लिए अब उनकी पत्नी नताशा दलाल (Natasha Dalal) भी डेब्यू करने जा रही हैं.

By: ABP Live | Updated at : 05 Dec 2021 04:30 PM (IST)

वरुण धवन और नताशा दलाल (फोटो - सोशल मीडिया)

Natasha Dalal going to Debut on OTT: स्टूडेंट ऑफ द ईयर (Student of the Year ) से डेब्यू करने वाले वरुण धवन (Varun Dhawan) आज बॉलीवुड के जाने-माने कलाकार हैं. मैं तेरा हीरो, कुली नंबर 1, बदलापुर, स्ट्रीट डांसर 3, दिलवाले, बद्रीनाथ की दुल्हनिया, जुड़वा 2 जैसी धमाकेदार फिल्में देने वाले वरुण धवन (Varun Dhawan) को टक्कर देने के लिए अब उनकी पत्नी भी डेब्यू करने जा रही हैं. जी हां. खबर है कि नताशा दलाल (Natasha Dalal) अब एक्टिंग में कदम रखने जा रही हैं. जल्द ही वो ओटीटी पर डेब्यू करेंगी.

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो नताशा दलाल ओटीटी पर एक कौन से दलालों को चुनना है शो में एक्टिंग करने जा रही हैं, जिसका नाम है Say Yes to the dress india. ये शो डिस्कवरी पर दिखाया जाएगा. चूंकि ये एक डिजाइनिंग बेस्ड शो है और नताशा दलाल भी फैशन डिजाइनर हैं इसी वजह से नताशा दलाल ने इसके लिए हां की है.

नताशा की मानें तो डेब्यू के लिए इससे बेहतर मौका और क्या होगा. इस शो में नताशा वेडिंग आउटफिट डिजाइन करती नजर आएंगी. वहीं उनके वेडिंग कलेक्शन की झलक भी इस शो में देखने को मिलेगी. आपको बता दें कि नताशा दलाल जानी मानी फैशन डिजाइनर हैं. अपने वेडिंग आउटफिट भी नताशा ने खुद ही डिजाइन किए थे.

जनवरी 2021 में हुई शादी

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नताशा दलाल और वरुण धवन की शादी 2021 जनवरी में हुई थी. शादी को लेकर ज्यादा शोर-शराबा ना करते हुए अलीबाग में सादा समारोह आयोजित किया गया था. जिसमें घर कौन से दलालों को चुनना है परिवार के खास लोगों और चुनिंदा बॉलीवुड सेलेब्स को आमंत्रित किया गया था.

हालांकि फिर भी इस शादी के चर्चे खूब हुए थे. नताशा और वरुण काफी समय से एक दूसरे को जानते हैं और कई सालों तक दोनों रिलेशनशिप में रहे. इंडस्ट्री में पैर जमाने के बाद वरुण धवन ने नताशा को ही अपना हमसफर चुन लिया.

Published at : 05 Dec 2021 04:29 PM (IST) Tags: Varun Dhawan Natasha Dalal natasha dalal ott debut हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: Entertainment News in Hindi

सवालों के घेरे में ‘दलाल की बीवी’ के लेखक रवि बुले

रवि बुले के लेखन को मैं गंभीरता से लेता रहा हूँ. हँसते हँसते रुला देने वाली कहानियों का लेखक. पॉपुलर और सीरियस को फेंटने वाला लेखक. लेकिन इधर उन्होंने ‘दलाल की बीवी’ नामक उपन्यास में ‘मंदी के दिनों में लव सेक्स और धोखे की कहानी’ क्या लिखी कि सवालों के घेरे में आ गए. यह साहित्य की कौन सी परंपरा है? क्या लेखक ने सीरियस और पॉपुलर को फेंटते फेंटते पॉपुलर के सामने पूरा सरेंडर कर दिया है? क्या यह पतन है? जानकी पुल के सवालों के घेरे में आ गए रवि बुले. पढ़िए उनसे एक रोचक बातचीत. हम सवालों के फेंस लगाते रहे, वे उनके जवाब फेंस तोड़ कर बाहर निकलने को छटपटाते रहे- प्रभात रंजन

– हिंदी में गंभीर लेखन की एक ही परंपरा मानी जाती है-प्रेमचंद की परंपरा। आप खुद को किस परंपरा का लेखक मानते हैं?

– क्या आपको लगता है कि ‘दलाल की बीवी’ गंभीर लेखन नहीं है? सवाल यह भी है कि क्या साहित्य की कसौटी सिर्फ तथाकथित गंभीरता को ही माना जाना चाहिए? गंभीरता की आपकी परिभाषा क्या है? वैसे बहुत सारे लेखकों को देखें तो उनकी गंभीरता बीमारी की तरह उनकी कौन से दलालों को चुनना है रचनाओं में दिखती है। प्रेमचंद की परंपरा को मात्र गंभीर कह कर समेट देना मुझे सही नहीं लगता। वह हिंदी के सबसे ‘पापुलर राइटर’ हैं। कोई शक…? वह हिंदी पाठकों के संसार में सबसे ज्यादा ग्राह्य है। जब आप कहते हैं कि प्रेमचंद की परंपरा ही हिंदी साहित्य में गंभीर मानी जाती है तो लगता है कि हमारे साहित्य में लाइन यहीं से शुरू होती है। उनसे पहले कोई हुआ ही नहीं। कबीर, सूर और तुलसी को कहां खड़ा करेंगे? मुझे लगता है कि कोई भी जब रचना करता है तो वह किसी परंपरा में खड़ा होने के लिए नहीं रचता। वह सिर्फ अपनी बात अपने अंदाज में कहता है। फिर वह दौर या परंपरा की किसी कड़ी में जुड़ जाए तो अच्छी बात।

-यह सचमुच एक डराने वाला खयाल है। जिस समय और समाज में हम रह रहे हैं वहां अपराध का डर हर पल है। कोई भी कहीं भी शिकार हो सकता है। एक संस्कृति कौन से दलालों को चुनना है पनप चुकी है जिसमें सब कुछ संदिग्ध है। किसी पर विश्वास नहीं किया जा सकता। ऐसे कौन से दलालों को चुनना है में रची गई कहानियां कैसी हो सकती हैं? कल की क्या कहें, आज ही बच्चों को सुनाने बताने के लिए हमारे पास कौन सी बहुत सुखद बाते हैं? माता-पिता बहुत सारी कौन से दलालों को चुनना है बातों से बच्चों को बचा कर रखना चाहते हैं, लेकिन नहीं बचा पाते। बच्चों का आज ही संकटग्रस्त नजर आ रहा है। उपन्यास में एक बिल्ली अपने बच्चों को कहानी सुना रही है कि राजा को जब रानी से प्यार नहीं रहा तो उसे संसार की किसी भी चीज से प्यार नहीं रहा। मगर बच्चों के पास उसी राजा की कहानी है कि उसने रानी से बदला लिया। रानी की हत्या की। रानी को भ्रष्ट करने वालों को अपनी तलवार से मौत के घाट उतारा। बच्चों की कहानियों में वक्त के साथ सेंध लग चुकी है।

-कोई भी रचनाकार चाह कर भी आदर्शों को त्याग कर कुछ नहीं रच सकता। आदर्श कमोबेश रचना की नींव में होते हैं। हां, यह जरूर है कि उस नींव पर तैयार होती हुई रचना का डिजाइन कैसा बनता है। बाहर से वह रचना कैसी दिखाई देती है।

-उपन्यास का शीर्षक मुझे ऐसा चाहिए था जो आकर्षक हो। उसे देख कर सामान्य पाठक का मन किताब पढ़ने का हो। अगर यह आपको साहसी लगता है तो इसके लिए धन्यवाद। यह उपन्यास हर पाठक वर्ग के लिए है। मठाधीशों-आलोचकों से आज तक मेरा सामना नहीं कौन से दलालों को चुनना है कौन से दलालों को चुनना है हुआ। वैसे यह जानना रुचिकर होगा कि ‘दलाल’ ‘की’ ‘बीवी’ इन तीन शब्दों में ऐसा कौन सा शब्द है जिससे मठाधीश-आलोचक डर जाएं? आप बताएं कि क्या हिंदी में कुछ भी लिखने के लिए मठाधीशों-आलोचकों की अनुमति जरूरी है?

-शीर्षक के साथ एक उपवाक्य भी हैः मंदी के दिनों में लव सेक्स और धोखे की कहानी। इस कहानी के केंद्र में वेश्यावृत्ति के धंधे का एक दलाल और उसकी बार डांसर रह चुकी बीवी है। लेकिन उनसे कौन से दलालों को चुनना है भी बढ़ कर उनके आस-पास का संसार है, जो पल-पल बदल रहा है।

– कहते हैं मुंबई सपनों का शहर है। लेकिन आपने उपन्यास में जिस मुंबई को दिखाया है वह दुस्स्वप्न का शहर है। यथार्थ के कितने करीब है यह उपन्यास?

-मुंबई वह शहर है जिससे आप एक साथ प्यार और नफरत कर सकते हैं। यह संभवतः देश का एकमात्र शहर से जिसे कवियों, लेखकों और कलाकारों ने अपने-अपने ढंग से नाम दिए। किसी के लिए यह सपनों की नगरी है, किसी के लिए मायानगरी। किसी की नजर में हादसों का शहर है तो किसी के लिए कामयाबी की मंजिल। कोई इसे माशूका मानता है तो कोई मां। मराठी के लोकप्रिय कवि नामदेव ढसाल ने तो मुंबई को अपनी प्रिय रांड बताया है! यह महानगर स्वप्न और दुस्वप्न एक साथ है। उपन्यास में भी आप देखेंगे कि यहां सपने देखने वाली आंखें हैं तो दुस्वप्नों में दर्ज हो गए किरदार भी मौजूद हैं। उपन्यास में फंतासी भी यथार्थ ही है।

– मुझे याद आता है कि मनोहर श्याम जोशी का उपन्यास ‘कुरु कुरु स्वाहा’ में भी एक मुंबई को दिखाया गया है। उसके 35 साल बाद आपका यह कौन से दलालों को चुनना है उपन्यास आया है। बीच में समंदर में कितने ही ज्वार-भाटे आए। मुंबई के किन बदलावों को आप देख पाते हैं, महसूस करते हैं?

-बदलाव ही जिंदगी का लक्षण है। मुंबई ही एक ऐसा शहर है जिसके पिछले सौ सालों में बदलने का पूरा रिकॉर्ड आपको साहित्य और सिनेमा में मिल जाएगा। समुंदर में कितने ही ज्वार-भाटे आएं हों यह महानगर पूरी जीवंतता के कौन से दलालों को चुनना है साथ अडिग है। बीते 35 बरसों में मुंबई का आकार-प्रकार तो बदला ही है, यहां की राजनीति और लोग भी बदले हैं। बीते कुछ बरसों में यहां के लोगों में अनुशासन कुछ कम हुआ है और शहर में गंदगी बढ़ी है। यह बढ़ती आबादी का नतीजा है। ग्लैमर की दुनिया का आकर्षण ज्यों का त्यों है, मगर इस दुनिया में मौके अब पहले की तुलना में काफी बढ़ गए हैं। अपराध बढ़ने के बावजूद कई शहरों के मुकाबले यह सुरक्षित है।

-उपन्यास का दलाल रूप भी है और रूपक भी। आप पाएंगे कि उपन्यास कौन से दलालों को चुनना है में उसका कोई नाम नहीं है। एक वक्त था जब दलाल बुरा शब्द था। दलाली बुरा शब्द था। अब नहीं है। दलाल आज ‘मिडिलमैन’ है। ‘ब्रोकर’ है। जो हर ठहरी हुई राह में बीच का रास्ता खोज निकालता है। दलाल अब स्मार्ट आदमी है और दलाली कला है। करियर है। राजनीति और प्रशासन से लेकर शिक्षा और अस्पताल तक की व्यवस्था में दलाल पूरी बेशर्मी के साथ दलाली वसूलते हैं। पूरे विश्व में दलाल अब स्थापित और सम्मानित हैं। कहीं भी जाइए आप इससे बच नहीं सकते। असली व्यक्ति अब दलाल ही है, जो चीजों को नियंत्रित करता है। यह गेमचेंजर है। किंगमेकर भी है।

-अपने समय के चाल-चरित्र को देखने-समझने के लिए। अपने आस-पास घट रही कहानियों को अनुभव करने और उनका आनंद लेने के लिए।

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