वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं से अगले साल प्रभावित हो सकता है देश का निर्यात

नई दिल्ली, 23 दिसंबर (भाषा) भारत का निर्यात भले ही वित्त वर्ष 2021-22 में 422 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्चस्तर को छू गया हो, लेकिन प्रमुख पश्चिमी बाजारों में ‘मंदी’ और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण भू-राजनीतिक संकट की छाया अगले साल यानी 2023 में देश के निर्यात को प्रभावित कर सकती है।

राजनीतिक स्थिरता, माल की आवाजाही, कंटेनरों और शिपिंग लाइनों की पर्याप्त उपलब्धता, मांग, स्थिर मुद्रा और सुचारू बैंकिंग प्रणाली जैसे सभी वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देने वाले कारक अब बिखर रहे हैं।

संकट को बढ़ाते हुए, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और अमेरिका जैसे देशों में कोविड महामारी के मामले फिर से बढ़ने लगे हैं।

इससे पहले कि कोविड-प्रभावित वैश्विक अर्थव्यवस्था संकट से बाहर आ पाती, फरवरी में रूस-यूक्रेन युद्ध के प्रकोप ने दुनियाभर में आपूर्ति श्रृंखला को गंभीर रूप से बाधित कर दिया और वैश्विक वस्तुओं की कीमतों को बढ़ा दिया। युद्ध ने महत्वपूर्ण काला सागर मार्ग से माल की आवाजाही को भी प्रभावित किया।

बिगड़ती भू-राजनीतिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) ने अनुमान लगाया है कि वर्ष 2023 में वैश्विक व्यापार में केवल एक प्रतिशत की वृद्धि होगी।

जिनेवा स्थित बहुपक्षीय व्यापार निकाय ने कहा है कि विश्व व्यापार में वर्ष 2022 की दूसरी छमाही में गति कम होने और वर्ष 2023 में कमजोर रहने की उम्मीद है, क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था पर कई झटके लगे हैं।

इसने कहा, “डब्ल्यूटीओ के अर्थशास्त्री अब भविष्यवाणी करते हैं कि वर्ष 2022 में वैश्विक व्यापारिक व्यापार की मात्रा 3.5 प्रतिशत बढ़ेगी – जो अप्रैल में तीन प्रतिशत पूर्वानुमान से थोड़ा बेहतर है। हालांकि, वर्ष 2023 के लिए वे एक प्रतिशत की ही वृद्धि होने की उम्मीद व्यक्त करते हैं – जो 3.4 प्रतिशत के पिछले अनुमान से काफी कम है।’’

जानकारों के मुताबिक, इन घटनाक्रमों के बीच भारत के लिए खुद को इन काली घटाओं से बचाना मुश्किल होगा।

हालांकि, उन्होंने कहा कि भारत ने अबतक वस्तुओं निर्यात में वृद्धि हासिल की है और सेवाओं के निर्यात में भी अच्छी वृद्धि से भी 2023 में देश से निर्यात बढ़ाने में मदद मिलेगी।

वर्ष 2021-22 में सेवा क्षेत्र का निर्यात भी 254 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्चस्तर को छू गया और उद्योग के विशेषज्ञों के अनुसार, यह इस वित्त वर्ष में 300 अरब डॉलर के स्तर को छू सकता है। इस साल जुलाई, अगस्त और सितंबर में निर्यात क्रमश: 2.14 प्रतिशत, 1.62 प्रतिशत और 4.82 प्रतिशत बढ़ा।

अक्टूबर में इसमें 12.12 प्रतिशत की कमी आई और नवंबर में निर्यात वृद्धि सपाट रही। अप्रैल-नवंबर 2022 के दौरान निर्यात 11 प्रतिशत बढ़कर 295.26 अरब डॉलर हो गया, जबकि पिछले वर्ष की समान अवधि में यह 265.77 अरब डॉलर था।

हालांकि, चालू वित्त वर्ष के पहले आठ माह की अवधि के दौरान आयात 29.5 प्रतिशत बढ़कर 493.61 अरब डॉलर का हो गया। वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल-नवंबर 2021 के दौरान यह 381.17 अरब डॉलर था।

मंत्रालय के अनुसार, व्यापारिक निर्यात में गिरावट के कारणों में कुछ विकसित अर्थव्यवस्थाओं में कोविड महामारी का प्रसार और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण मंदी और उसके परिणामस्वरूप मांग में आई गिरावट तथा घरेलू मुद्रास्फीति को रोकने के लिए किये गये कुछ उपाय शामिल हैं।

भारत के लिए बड़ी समस्या व्यापार घाटे (आयात और निर्यात के बीच का अंतर) का बढ़ना होगा, जिसका रुपये के मूल्य और चालू खाते के घाटे (कैड) पर असर पड़ता है।

डेलॉयट इंडिया आपूर्ति और मांग क्षेत्र संकेतक के अर्थशास्त्री रुमकी मजूमदार ने कहा कि वैश्विक व्यापार की स्थिति को देखते हुए भारत के निर्यात में कमी आने की आशंका है। हालांकि, डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट आंशिक रूप से इस प्रभाव को कम कर सकती है।

फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन (फियो) के महानिदेशक अजय सहाय ने कहा कि वर्ष 2023 में वैश्विक व्यापार में एक प्रतिशत की गिरावट का भारतीय निर्यात पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

सहाय ने कहा, ‘‘हालांकि, हम इस तथ्य को भी जानते हैं कि वैश्विक व्यापार में हमारा हिस्सा अब भी दो प्रतिशत से कम है। इसलिए वैश्विक व्यापार की घट-बढ़ का हमपर अधिक प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। इसके अलावा कुछ सकारात्मक घटनाक्रम भी वर्ष 2023 में भारत के लिए मददगार साबित होंगे।

उन्होंने कहा कि संयुक्त अरब अमीरात और ऑस्ट्रेलिया के साथ हाल ही में हुआ मुक्त व्यापार समझौतों के प्रभावी उपयोग से आने वाले महीनों में निर्यात बढ़ाने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि ब्रिटेन और कनाडा के साथ नए समझौते भी वर्ष 2023 की पहली छमाही में निर्यात को और बढ़ावा दे सकता हैं।

उन्होंने कहा कि रुपये के मूल्य में आई गिरावट भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर है क्योंकि निर्यात के मुकाबले हमारा आयात कहीं 50 प्रतिशत अधिक है। रुपये में थोड़ी घट-बढ़ निर्यातकों के लिए बेहतर है लेकिन भारी घट-बढ़ के कारण जोखिम हो सकता है।

मुंबई स्थित निर्यातक और टेक्नोक्राफ्ट इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष शारदा कुमार सर्राफ ने कहा कि हालांकि यूरोप, अमेरिका और जापान जैसी सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में मंदी के संकेत दिख रहे हैं, फिर भी भारतीय निर्यात में वर्ष 2023 में 8-10 प्रतिशत की वृद्धि की संभावना है।

आपूर्ति और मांग क्षेत्र संकेतक

दलहन के पारंपरिक किसानों का समर्थन करने से मिल सकती है दालों की आत्मनिर्भरता

2033 के लिए मांग और आपूर्ति अनुमानों पर नीति आयोग की रिपोर्ट में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए क्षेत्र में रबी दालों की क्षमता और उपज विस्तार का पूरी तरह से उपयोग करने सिफारिश की गई।

By Shalini Bhutani

On: Monday 13 September 2021

दालों की जमाखोरी हमेशा महंगाई लेकर आती है। दालों की महंगाई जमाखोरी का एक संकेतक बन गई है। शायद इसी भय से बीच-बीच में कानून में फेरबदल और बदलाव होते हैं। स्वतंत्र व कानून मामलों की शोधार्थी व नीति विशेषज्ञ शालिनी भुटानी का यह आलेख इन्हीं परेशानियों की तहें खोल रहा है :

भारत सरकार स्पष्ट रूप से जमाखोरी को लेकर चिंतित है, जो ऐसे समय में दालों की कीमतों को बढ़ा सकती है जब मुद्रास्फीति बढ़ रही है। पूर्व में भी एसेंशियल कमोडिटी एक्ट (ईसीए) के तहत निर्धारित अनाज और दालों की स्टॉकिंग सीमा ने जमाखोरी को रोकने में मदद की। यह 2 जुलाई 2021 को पारित आदेश (19 जुलाई को संशोधित आदेश) का स्पष्ट कारण प्रतीत होता है। इस आदेश के तहत स्टॉक सीमा की अवधि 31 अक्टूबर 2021 तक है ।

स्टॉक सीमा का यह आदेश आपूर्ति और मांग क्षेत्र संकेतक यह उस अवधि से भी मेल खाता है जिसमें मई 2021 से भारत सरकार द्वारा एक ओपन जेनरल लाइसेंस (ओजीएल) के तहत दालों के आयात की अनुमति दी गई है। इसका तात्पर्य यह है कि दालों को बिना लाइसेंस और बिना किसी प्रतिबंध के स्वतंत्र रूप से आयात किया जा सकता है। हालांकि, 2 जुलाई को दिया गया स्टॉक सीमा पर हालिया आदेश आयातकों द्वारा स्टॉक किये जा सकने वाले माल की मात्रा पर सीमा निर्धारित करता था।

2 जुलाई, को जारी स्टॉक सीमा आदेश में आयातकों के लिए किया गया प्रावधान

    आपूर्ति और मांग क्षेत्र संकेतक
  1. 15 मई 2021 से पहले स्टॉक/आयातित राशि के लिए 200 मिलियन टन और एक किस्म के 100 मिलियन टन से अधिक नहीं।
  1. 15 मई 2021 के बाद आयात किए गए स्टॉक के लिए, सीमा शुल्क निकासी की तारीख से 45 दिनों के बाद समान स्टॉक सीमा लागू होती है।

(19 जुलाई को स्टॉक सीमा के संशोधित आदेश में बदलाव किया गया और आयातकों को बाहर निकाल दिया गया।)

कानून और नीतियों में ये लगातार बदलाव अनिश्चितताएं पैदा करते हैं, खासकर आयातकों के लिए। हालाँकि भारत को दालें निर्यात करने वाले मलावी और म्यांमार जैसे देशों के साथ सरकार ने जून 2021 में एक समझौता किया जिसके तहत भारत सरकार इन दोनों देशों से अगले पांच वर्षों तक निजी व्यापार के माध्यम से अरहर और उड़द दाल आयात करेगी। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि ये देश घरेलू स्तर पर दाल का उपभोग नहीं करते हैं जैसा कि भारत करता है।

लेकिन शायद सबसे अधिक आवश्यकता दालों के घरेलू उत्पादन में तेजी लाने की है। भारत दुनिया में दालों का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। भले ही केवल 10 राज्य देश की 70 प्रतिशत दाल की खपत करते हैं। क्षेत्र विशिष्ट आवश्यकताएं होने के साथ साथ भारत में न तो समान खाने की आदतें हैं और न ही समान कृषि पारिस्थितिक वास्तविकताएं। यह विविधता स्वयं एक अधिक गैर-केंद्रीकृत उत्पादन योजना के आयोजन का माध्यम हो सकती है।

2033 के लिए मांग और आपूर्ति अनुमानों पर नीति आयोग की रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए क्षेत्र में रबी आपूर्ति और मांग क्षेत्र संकेतक दालों की क्षमता और उपज विस्तार का पूरी तरह से उपयोग करने की आवश्यकता है।

दालें खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिए भारत सरकार की रणनीति का अभिन्न अंग हैं। उपभोक्ता मामले विभाग, भारत सरकार का उपभोक्ता मंत्रालय एवं खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय को वितरण के लिए पर्याप्त बफर स्टॉक सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।

उपभोक्ता मामलों के सचिव के अनुसार: पीएमजीकेएवाई के पहले चरण में, राज्यों की प्राथमिकताएं जो भी थीं (और वे अविश्वसनीय रूप से विविध थीं ) उन सभी दालों की आपूर्ति उन राज्य सरकारों को की गयी थी। और जुलाई से नवंबर 2020 तक चले कार्यक्रम के अगले चरण में सभी राज्यों को काला चना दिया गया था।

भारत में शीर्ष दाल व्यापारियों की शीर्ष संस्था आईपीजीए 2011 से, कृषि के साथ-साथ उपभोक्ता मामलों के मंत्रालयों के साथ नीतियों में निम्नलिखित संशोधन करने के लिए चर्चा कर रही है:

  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली में दालों को शामिल करना
  • खाद्य सुरक्षा अधिनियम में दालों को शामिल करना
  • सभी दालों के मुफ्त निर्यात की अनुमति
  • यह सुनिश्चित करना कि दालों की खरीद एमएसपी पर हो; और व्यापारिक मूल्य में किसी भी गिरावट के मामले में, नेफेड जैसी सरकारी एजेंसियों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर उपज खरीदना चाहिए।

कृषि मूल्य एवं लागत आयोग (सीएसीपी) द्वारा अनुशंसित और जून 2021 तक भारत सरकार द्वारा निर्धारित विभिन्न दालों के लिए रुपये प्रति कुंतल में एमएसपी इस प्रकार है:

सीमेंट-मांग से अधिक आपूर्ति

यह इसलिए संभव हो पाया क्योंकि जून की तिमाही में देश भर में सीमेंट की कीमतें स्थिर रहीं। हालांकि जुलाई और अगस्त में देश के कुछ भागों में कीमतों में बढ़ोतरी देखी गई विशेषकर दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों में। यद्यपि जुलाई में सीमेंट उत्पादकों मे कम मात्रा में सीमेंट का आपूर्ति और मांग क्षेत्र संकेतक उत्पादन किया।

जून में जहां सीमेंट कंपनियों ने 147 लाख टन सीमेंट का उत्पादन किया था वहीं जुलाई में यह उत्पादन महज 145 लाख टन रहा। उद्योग पर निगाह रखने वाले लोंगो के अनुसार मांग में धीरे धीरे कमी आ रही है जबकि आपूर्ति के वित्तीय वर्ष 2008 से 2011 तक 20 से 22 फीसदी बढ़ने की संभावना है।

जून में भी मांग कमजोर रही और देश के अधिकांश भागों में मांग में ईकाई अंकों की ही बढोतरी देखी गई हालांकि दक्षिणी राज्यों में दोहरे अंकों में बढ़त हुई। इसकी वजह रही मानसून का समय से पहले आ जाना। अगले कुछ सालों में मांग के 10 से 12 फीसदी की गति से बढ़ने की संभावना है। इससे सीमेंट की कीमतों पर असर पड़ सकता है और यह अगले 12 से 15 महीनों में आठ से 12 फीसदी गिर सकती हैं।

यहां तक कि इंडस्ट्री के कैपिसिटी यूटिलाइजेशन के भी पांच सालों में पहली बार गिरने की संभावना है। यह पिछले साल 100 फीसदी रही थी जबकि इस साल इसके सिर्फ 89 फीसदी रहने की संभावना है। इसकी वजह है कि वित्तीय वर्ष 2008 में 300 लाख टन सीमेंट आपूर्ति और मांग क्षेत्र संकेतक का उत्पादन और होने लगेगा।

यूटीलाइजेशन के मौजूदा 95 फीसदी के स्तर से गिरकर 87 फीसदी के स्तर पर पहुंचने की संभावना है और वित्त्तीय वर्ष 2010 में इसके और गिरने की संभावना है क्योंकि अगले दो तीन सालों में 1200 लाख टन की अतिरिक्त सीमेंट क्षमता जुड़ेगी।

सीमेंट उत्पादकों को कोयले की ऊंची कीमतों को झेलना होगा। हालांकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोयले की कीमतों में जुलाई के महीनें में 14 फीसदी की गिरावट आई है और यह 152 डॉलर प्रति टन के स्तर पर पहुंच गया है।

लेकिन अभी भी ये 166 फीसदी ज्यादा है। हालांकि यह जून की तिमाही में स्थिर रहा। बिजली की ऊंची कीमतों की वजह से भी ऑपरेटिंग मार्जिन पर असर पड़ेगा। सीमेंट स्टॉक का कारोबार इससमय वित्त्तीय वर्ष 2009 में आपूर्ति और मांग क्षेत्र संकेतक अनुमानित आय से पांच से दस गुना के सस्तर पर हो रहा है और यह महंगा नही है।

भारत-इतना सस्ता भी नहीं

विदेशी निवेशक भारतीय स्टॉक में फिर दिलचस्पी ले रहे हैं। सिटी ग्रुप की रिपोर्ट कहती है कि पिछले हफ्ते विदेशी निवेशक भारतीय बाजार में शुध्द खरीदार बने रहे और अप्रैल 2008 के बाद उन्होंने भारतीय बाजार में सबसे ज्यादा खरीदारी की। पिछले आपूर्ति और मांग क्षेत्र संकेतक चार हफ्तों में बाजार में इनफ्लो 15.2 करोड़ डॉलर तक पहुंच गया और पिछले हफ्ते के दौरान ही यह 5.2 करोड़ डॉलर रहा।

सिटी ग्रुप का मानना है कि ऊंची वैल्यूएशन अभी भी एक समस्या है। 14,678 अंकों पर बीएसई सेंसेक्स का कारोबार वित्त्तीय वर्ष 2009 में अनुमानित आय से 15 से 16 गुना के स्तर पर हो रहा है। यह साल की शुरुआत से कम है जब बाजार का कारोबार 17 से 18 गुना के स्तर पर हो रहा था।

हालांकि तब से आर्थिक हालातों में भी परिवर्तन आया है और अब भविष्य में ज्यादा वैल्यूएशन की संभावना नजर नहीं आ रही है। ऊंची महंगाई की वजह से हाईरिस्क रेट के बढ़ने की संभावना है। हालांकि यह संभावना भी बन सकती है कि 10 वर्षीय बेंचमार्क बांड स्टॉप की वजह से यह रुझान टूटे।

यह देखना ज्यादा मुश्किल नहीं है कि क्यों विदेशी संस्थागत निवेशक भारत में चयनित स्टॉक की खरीदारी कर रहे हैं। साल की शुरुआत से अब तक भारतीय दूसरा सबसे ज्यादा खराब प्रदर्शन करने वाला बाजार रहा है। यदि वैल्यूएशन सस्ता होता है तब भी तरलता के टाइट बने रहने की संभावना है। रोचक बात यह है कि भारतीय घरेलू निवेशकों ने भी अब तक अगस्त के महीनें में 823 करोड़ की खरीदारी की है।

जुलाई लगातार दसवां महीना रहा जब म्युचुअल फंड ने शुध्द इनफ्लो देखा। लेकिन यह 260 करोड़ का आंकड़ा पिछले नौ महीनों में सबसे कम और जून महीनें की तुलना में 81 फीसदी कम रहा। हालांकि जीवन बीमा कंपनियां जो इक्विटी की काफी खरीदारी करती है, म्युचुअल फंडों के लेने वाले बने रहे।

निजी कंपनियों की बिजनेस ग्रोथ 80 फीसदी सालाना ज्यादा रही और यह 2600 करोड़ के स्तर पर रहा जो यह दिखाता है कि इक्विटी बाजार में आई गिरावट की वजह से निवेशक इससे दूरी बना रहे हैं।

भारत के कृषि क्षेत्र में मजबूती कायम, रबी की बुवाई से मिले अच्छे संकेत- RBI

मौजूदा रबी (सर्दियों के सीजन) सत्र में गेहूं की बुवाई 5.36 प्रतिशत बढ़कर 211.62 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गई है. वहीं सभी फसलों की कुल बुवाई सामान्य से 6.8 प्रतिशत अधिक रही है

भारत के कृषि क्षेत्र में मजबूती कायम, रबी की बुवाई से मिले अच्छे संकेत- RBI

भारत का कृषि क्षेत्र मजबूत बना हुआ है और खरीफ के उत्पादन में कमी के संकेत के बाद रबी की बुवाई से मिले बेहतर संकेतों से स्थिति मजबूत दिख रही है. ये मानना है रिजर्व बैंक का. आज रिजर्व बैंक ने अपनी पॉलिसी समीक्षा पेश की है. जिसमें कृषि सहित अर्थव्यवस्था से जुड़े कई सेक्टर की बात कही गई है. कृषि क्षेत्र के बेहतर संकेतों के बाद खाद्य महंगाई में नरमी की उम्मीद से भी रिजर्व बैंक मान रहा है कि अगले साल महंगाई दर पर नियंत्रण रहेगा और वो रिजर्व बैंक की तय सीमा के अंदर आ सकती है.

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा है कि देश का कृषि क्षेत्र मजबूत बना हुआ और रबी की बुवाई की शुरुआत काफी अच्छी रही है. हालांकि, बारिश असंतुलित रहने की वजह से देश के खरीफ उत्पादन में कुछ कमी आने का अनुमान है. पहले अग्रिम अनुमान के अनुसार, देश का कुल खरीफ उत्पादन 14.99 करोड़ टन रहने का अनुमान है. पिछले साल के खरीफ फसल वर्ष में उत्पादन 15.60 करोड़ टन रहा था. आपूर्ति पक्ष के बारे में दास ने कहा कि कृषि क्षेत्र की मजबूती बरकरार है. रबी बुवाई की शुरुआत अच्छी हुई है. दो दिसंबर, 2022 तक रबी की बुवाई सामान्य से 6.8 प्रतिशत अधिक रही है.

कृषि मंत्रालय की ओर से शुक्रवार को जारी आंकड़ों के अनुसार, मौजूदा रबी (सर्दियों के सीजन) सत्र में गेहूं की बुवाई 5.36 प्रतिशत बढ़कर 211.62 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गई है. राजस्थान, बिहार और उत्तर प्रदेश में रबी की बुवाई बढ़ी है. रबी की मुख्य फसल गेहूं की बुवाई अक्टूबर में शुरू होती है। इसकी कटाई मार्च-अप्रैल में होती है. रबी सत्र में गेहूं के अलावा धान और दलहन मसलन चना और उड़द के अलावा मूंगफली और सरसों की बुवाई की जाती है. भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में दास ने कहा कि रबी की बुवाई में अच्छी प्रगति, सतत शहरी मांग, ग्रामीण मांग में सुधार, विनिर्माण में तेजी, सेवा क्षेत्र के पुनरुद्धार तथा ऋण की मांग बढ़ने जैसे कारकों से परिदृश्य को समर्थन मिल रहा है।

भारत के कृषि क्षेत्र में मजबूती कायम, रबी की बुवाई से मिले अच्छे संकेत- RBI

मौजूदा रबी (सर्दियों के सीजन) सत्र में गेहूं की बुवाई 5.36 प्रतिशत बढ़कर 211.62 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गई है. वहीं सभी फसलों की कुल बुवाई सामान्य से 6.8 प्रतिशत अधिक रही है

भारत के कृषि क्षेत्र में मजबूती कायम, रबी की बुवाई से मिले अच्छे संकेत- RBI

भारत का कृषि क्षेत्र मजबूत बना हुआ है और खरीफ के उत्पादन में कमी के संकेत के बाद रबी की बुवाई से मिले बेहतर संकेतों से स्थिति मजबूत दिख रही है. ये मानना है रिजर्व बैंक का. आज रिजर्व बैंक ने अपनी पॉलिसी समीक्षा पेश की है. जिसमें कृषि सहित अर्थव्यवस्था से जुड़े कई सेक्टर की बात कही गई है. कृषि क्षेत्र के बेहतर संकेतों के बाद खाद्य महंगाई में नरमी की उम्मीद से भी रिजर्व बैंक मान रहा है कि अगले साल महंगाई दर पर नियंत्रण रहेगा और वो रिजर्व बैंक की तय सीमा के आपूर्ति और मांग क्षेत्र संकेतक अंदर आ सकती है.

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा है कि देश का कृषि क्षेत्र मजबूत बना हुआ और रबी की बुवाई की शुरुआत काफी अच्छी रही है. हालांकि, बारिश असंतुलित रहने की वजह से देश के खरीफ उत्पादन में कुछ कमी आने का अनुमान है. पहले अग्रिम अनुमान के अनुसार, देश का कुल खरीफ उत्पादन 14.99 करोड़ टन रहने का अनुमान है. पिछले साल के खरीफ फसल वर्ष में उत्पादन 15.60 करोड़ टन रहा था. आपूर्ति पक्ष के बारे में दास ने कहा कि आपूर्ति और मांग क्षेत्र संकेतक कृषि क्षेत्र की मजबूती बरकरार है. रबी बुवाई की शुरुआत अच्छी हुई है. दो दिसंबर, 2022 तक रबी की बुवाई सामान्य से 6.8 प्रतिशत अधिक रही है.

कृषि मंत्रालय की ओर से शुक्रवार को जारी आंकड़ों के अनुसार, मौजूदा रबी (सर्दियों के सीजन) सत्र में गेहूं की बुवाई 5.36 प्रतिशत बढ़कर 211.62 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गई है. राजस्थान, बिहार और उत्तर प्रदेश में रबी की बुवाई बढ़ी है. रबी की मुख्य फसल गेहूं की बुवाई अक्टूबर में शुरू होती है। इसकी कटाई मार्च-अप्रैल में होती है. रबी सत्र में गेहूं के अलावा धान और दलहन मसलन चना और उड़द के अलावा मूंगफली और सरसों की बुवाई की जाती है. भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में दास ने कहा कि रबी की बुवाई में अच्छी प्रगति, सतत शहरी मांग, ग्रामीण मांग में सुधार, विनिर्माण में तेजी, सेवा क्षेत्र के पुनरुद्धार तथा ऋण की मांग बढ़ने जैसे कारकों से परिदृश्य को समर्थन मिल रहा है।

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