डॉलर दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा क्यों मानी जाती है?
एक समय था जब एक अमेरिकी डॉलर सिर्फ 4.16 रुपये में खरीदा जा सकता था, लेकिन इसके बाद साल दर साल रुपये का सापेक्ष डॉलर महंगा होता जा रहा है अर्थात एक डॉलर को खरीदने के लिए अधिक डॉलर खर्च करने पास रहे हैं. ज्ञातव्य है कि 1 जनवरी 2018 को एक डॉलर का मूल्य 63.88 था और 18 फरवरी, 2020 को यह 71.39 रुपये हो गया है. आइये इस लेख में जानते हैं कि डॉलर दुनिया में सबसे मजबूत मुद्रा क्यों मानी जाती है?
दुनिया का 85% व्यापार अमेरिकी डॉलर की मदद से होता है. दुनिया भर के 39% क़र्ज़ अमेरिकी डॉलर में दिए जाते हैं और कुल डॉलर की संख्या के 65% का इस्तेमाल अमरीका के बाहर होता है. इसलिए विदेशी बैंकों और देशों को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में डॉलर की ज़रूरत होती है. आइये इस लेख के माध्यम से जानते हैं कि आखिर डॉलर को विश्व में सबसे मजबूत मुद्रा के रूप में क्यों जाना जाता है?
अब हालात तो ऐसे हो गए हैं कि यदि कोई डॉलर का नाम लेता है तो लोगों के दिमाग में सिर्फ अमेरिकी डॉलर ही आता है जबकि विश्व के कई देशों की करेंसी का नाम भी 'डॉलर' है. अर्थात अमेरिकी डॉलर ही “वैश्विक डॉलर” का पर्यायवाची बन गया है.
डॉलर की मजबूती का इतिहास:
वर्ष 1944 में ब्रेटन वुड्स समझौते के बाद डॉलर की वर्तमान मज़बूती की शुरुआत हुई थी. उससे पहले ज़्यादातर देश केवल सोने को बेहतर मानक मानते थे. उन देशों की सरकारें वादा करती थीं कि वह उनकी मुद्रा को सोने की मांग के मूल्य के आधार पर तय करेंगे.
न्यू हैम्पशर के ब्रेटन वुड्स में दुनिया के विकसित देश मिले और उन्होंने अमरीकी डॉलर के मुक़ाबले सभी मुद्राओं की विनिमय दर को तय किया. उस समय अमरीका के पास दुनिया का सबसे अधिक सोने का भंडार था. इस समझौते ने दूसरे देशों को भी सोने की जगह अपनी मुद्रा का डॉलर को समर्थन करने की अनुमति दी.
(ब्रेटन वुड्स कांफ्रेंस)
सन 1970 की शुरुआत में कई देशों ने मुद्रास्फीति से लड़ने के लिए डॉलर के बदले सोने की मांग शुरू कर दी थी. ये देश अमेरिका को डॉलर देते और बदले में सोना ले लेते थे. ऐसा होने पर अमेरिका का स्वर्ण भंडार खत्म होने लगा. उस समय के अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन ने अपने सभी भंडारों को समाप्त करने की अनुमति देने के बजाय डॉलर को सोने से अलग कर दिया और इस प्रकार डॉलर और सोने के बीच विनिमय दर का करार डॉलर वैश्विक मुद्रा क्यों खत्म हो गया और मुद्राओं का विनिमय मूल्य; मांग और पूर्ती के आधार पर होने लगा.
डॉलर सबसे मजबूत मुद्रा होने के निम्न कारण हैं
1. इंटरनेशनल स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइज़ेशन लिस्ट के अनुसार दुनिया भर में कुल 185 मुद्राएँ हैं. हालांकि, इनमें से ज़्यादातर मुद्राओं का इस्तेमाल अपने देश के भीतर ही होता है. कोई भी मुद्रा दुनिया भर में किस हद तक प्रचलित है यह उस देश की अर्थव्यवस्था और ताक़त पर निर्भर करता है. ज़ाहिर है डॉलर की मज़बूती और उसकी स्वीकार्यता अमरीकी अर्थव्यवस्था की ताक़त को दर्शाती है.
2. दुनिया का 85% व्यापार अमेरिकी डॉलर की मदद से होता है. दुनिया भर के 39% क़र्ज़ अमेरिकी डॉलर में दिए जाते हैं और कुल डॉलर की संख्या के 65% का इस्तेमाल अमरीका के बाहर होता है. इसलिए विदेशी बैंकों और देशों को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में डॉलर की ज़रूरत होती है.
3. विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में देशों के कोटे में भी सदस्य देशों को कुछ हिस्सा अमेरिकी डॉलर के रूप में जमा करना पड़ता है.
4. दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों में जो विदेशी मुद्रा भंडार होता है उसमें 64% अमरीकी डॉलर होते हैं.
5. यदि दो नॉन अमेरिकी देश भी एक दूसरे के साथ व्यापार करते हैं तो भुगतान के रूप में वे अमेरिकी डॉलर लेना पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि यदि उनके हाथ में डॉलर है तो वे किसी भी अन्य देश से अपनी जरूरत का सामान आयात कर लेंगे.
6. अमेरिकी डॉलर की विनिमय दर में बहुत अधिक उतार-चढ़ाव नहीं होता है इसलिए देश इस मुद्रा को तुरंत स्वीकार कर लेते हैं.
7. अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है जिसके कारण यह बहुत से गरीब देशों को अमरीकी डॉलर में ऋण देता है और ऋण बसूलता भी उसी मुद्रा में हैं जिसके कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर की मांग हमेशा रहती है.
8. अमेरिका विश्व बैंक समूह और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के खजानों में सबसे अधिक योगदान देता है इस कारण ये संस्थान भी सदस्य देशों को अमेरिकी डॉलर में ही कर्ज देते हैं. जो कि डॉलर की वैल्यू को बढ़ाने के मददगर होता है.
डॉलर के बाद दुनिया में दूसरी ताक़तवर मुद्रा यूरो है जो दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों के विदेशी मुद्रा भंडार में 20% है. यूरो को भी पूरे विश्व में आसानी से भुगतान के साधन के रूप में स्वीकार किया जाता है. दुनिया के कई इलाक़ों में यूरो का प्रभुत्व भी है. यूरो इसलिए भी मज़बूत है क्योंकि यूरोपीय यूनियन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है. कुछ अर्थशास्त्री मानते हैं कि निकट भविष्य में यूरो, डॉलर की जगह ले सकता है.
डॉलर को चीनी और रूसी चुनौती:
मार्च 2009 में चीन और रूस ने एक नई वैश्विक मुद्रा की मांग की. वे चाहते हैं कि दुनिया के लिए एक रिज़र्व मुद्रा बनाई जाए 'जो किसी इकलौते देश से अलग हो और लंबे समय तक स्थिर रहने में सक्षम हो.
इसी कारण चीन चाहता है कि उसकी मुद्रा “युआन” वैश्विक विदेशी मुद्रा बाज़ार में व्यापार के लिए व्यापक तरीक़े से इस्तेमाल हो. अर्थात चीन, युआन को अमेरिकी डॉलर की वैश्विक मुद्रा के रूप में इस्तेमाल होते देखना चाहता है. ज्ञातव्य है कि चीन की मुद्रा युआन को IMF की SDR बास्केट में 1 अक्टूबर 2016 को शामिल किया गया था.
यूरोपियन यूनियन की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2016 में विश्व के कुल निर्यात में अमेरिका का हिस्सा 14% और आयात में अमेरिकी हिस्सा 18% था. तो इन आंकड़ों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अमेरिकी डॉलर के मजबूत होने के पीछे सबसे बड़ा कारण अमेरिका का विश्व व्यापार में महत्व और डॉलर की अंतरराष्ट्रीय बाजार में वैश्विक मुद्रा के रूप में सर्वमान्य पहचान है.
आख़िर डॉलर क्यों है ग्लोबल करेंसी?
जैसा की हम सभी जानते है कि इन दिनों भारत की करेंसी रुपया अपने अब तक के सबसे निचले स्तर पर आ गई है इसे पहले आज तक रुपया डॉलर के मुकाबले कभी इतना कमजोर नहीं हुआ। आज एक रुपये की कीमत 75 डॉलर हो गई है। हालांकि सिर्फ भारत ही नहीं दुनियाभर की कई करेंसी डॉलर के मुकाबले गिरी है जिसका एक मुख्य कारण तेल की बढ़ती कीमत और विश्व बाजार की स्थिति है।
लेकिन आज हम इस बारे में बात नहीं करने वाले है कि रुपया क्यों कमजोर हो रहा है या विश्व बाजार में ऐसी स्थिति क्यों पैदा हो रही है बल्कि आज हम इस बारे में जानकारी देने वाले है कि अमेरिका की करेंसी डॉलर को ही वैश्विक मुद्रा का दर्जा प्राप्त क्यों है यानी कि किसी भी देश की करेंसी को डॉलर के साथ ही क्यों मापा जाता है? क्या इसकी वजह ये है कि अमेरिका इस समय दुनिया का सबसे विकसित देश है या फिर कोई ओर वजह है चलिए आपको बताते डॉलर वैश्विक मुद्रा क्यों है।
Why the Dollar is the Global Currency
आख़िर डॉलर क्यों है ग्लोबल करेंसी? – Why the Dollar is the Global Currency
डॉलर आज के समय में एक वैश्विक मुद्रा – Global Currency बन गई है। जिसकी एक बड़ी वजह ये है कि दुनियाभर के केंद्रीय बैंको में अमेरिकी डॉलर स्वीकार्य है। और रिपोर्टस की माने तो दुनियाभर में देशों के बीच दिए जाने वाले 39 फीसदी कर्ज डॉलर में ही दिए जाते है। हालांकि डॉलर को हमेशा से वैश्विक मुद्रा का दर्जा प्राप्त नहीं था।
साल 1944 से पहले गोल्ड को मानक माना जाता था। यानी की दुनियाभर के देश अपने देश की मुद्रा को सोने की मांग मूल्य के आधार पर ही तय करते थे। लेकिन साल 1944 में ब्रिटेन में वुड्स समझौता हुआ। जिसमें ब्रिटेन के वुड्स शहर में दुनियाभर के विकसित देशों की एक बैठक हुई जिसमें ये तय किया गया कि अमरीकी डॉलर के मुकाबले सभी मुद्राओँ की विनिमय दर तय की जाएगी।
ऐसा इसलिए क्योंकि उस समय अमेरिका के पास दुनिया में सबसे ज्यादा सोने के भंडार थे। जिस वजह से बैठक मे शामिल हुए दूसरे देशों ने भी सोने की जगह डॉलर को वैश्विक मुद्रा बनाने और डॉलर के अनुसार उनकी मुद्रा का तय करने की अनुमति दी।
हालांकि इसके बाद कई बार डॉलर की जगह दोबारा सोने को मानक मांग उठाने की आवाज उठी। जिसमें से पहली आवाज साल 1970 में उठी जिसमें कई देशों ने मांग रखी कि डॉलर की जगह सोने को मांग शुरु कर दी थी। क्योंकि वो मुद्रा स्फीति से लड़ना चाहते थे। उस समय के अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन ने स्थिति को देखते हुए डॉलर को सोने से ही अलग कर दिया था।
लेकिन तब तक डॉलर विश्व बाजार में अपनी पहचान बना चुका था। जिसमें लोगों के लिए विनमय करना सबसे सुरक्षित था। यही कारण है कि आज के समय में दुनिया भर के केंद्रीय बैंको में 64 प्रतिशत मुद्रा डॉलर में है। हालांकि डॉलर के वैश्विक मुद्रा होने का एक मुख्य कारण ये भी है कि उसकी अर्थव्यवस्था इस समय दुनिया की सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था है। अगर रिपोर्टस की बात करें तो इंटरनेशनल स्टैंडर्ड ऑर्गनाइजेंशन के अनुसार दुनियाभर में 185 करेंसियों का संचालन है।
लेकिन इनमें से ज्यादातर करेंसी केवल अपने देश तक ही सीमित है यानी की वो किसी ओर देश में नहीं चलती है। जिस कारण वैश्विक स्तर पर होने वाला 80 प्रतिशत व्यापार डॉलर में ही किया जाता है।
क्या डॉलर का कोई विकल्प है
डॉलर के बाद जो करेंसी दुनियाभर सबसे ज्यादा मान्य है वो है यूरो, ऐसा इसलिए क्योंकि अमेरिका की ही तरह यूरोपीय यूनियन भी दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थों में से एक है। दुनियाभर के केंद्रीय बैंको में डॉलर के बाद सबसे ज्यादा करेंसी यूरो है। बैंको में 19.9 प्रतिशत यूरो का भंडार है। साथ ही दुनियाभर के कई देशों यूरो को काफी इस्तेमाल किया जाता है।
हालांकि चीन और रुस जैसे बड़े देश भी अपनी करेंसी को वैश्विक करेंसी बनाने की पूर्जोर मेहनत कर रहे है। ऐसा इसलिए क्योंकि ऐसा होने से उनके देश की आर्थिक स्थिति ओर भी मजबूत हो जाएगी। जिस कारण चीन काफी समय से नई वैश्विक मुद्रा की मांग उठा रहा है। और डॉलर वैश्विक मुद्रा क्यों शायद चीन आने वाले समय में कामयाब भी हो जाए क्योंकि साल 2016 में चीन की करेंसी यूआन दुनिया की डॉलर और यूरो के बाद एक ओर बड़ी करेंसी बनकर उभरी थी ।जिस वजह से चीन लगातार अपनी अर्थव्यवस्था को सुधारने में लगा हुआ हैं।
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Dollar Index: डॉलर इंडेक्स क्यों महत्वपूर्ण है? अंतरराष्ट्रीय कारोबार में अमेरिकी मुद्रा की इतनी चलती क्यों है?
Dollar Index: डॉलर इंडेक्स क्यों महत्वपूर्ण है? अंतरराष्ट्रीय कारोबार में अमेरिकी मुद्रा की इतनी चलती क्यों है?
- Date : 29/11/2022
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डॉलर अमेरिकी मुद्रा अंतरराष्ट्रीय कारोबार के लिए सिर्फ एक महत्वपूर्ण मुद्रा है और इस पर सभी का ध्यान बना रहता है।
Importance of Dollar Index: जब भी अंतरराष्ट्रीय कारोबार की चर्चा होती है तो डॉलर इंडेक्स का आकलन जरूर होता है। फिर चाहे उसमें यूरोपीय यूरो या पाउंड के चढ़ने-उतरने की बात हो, रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद बाजार में मंदी की बात हो, चीन और रूस की आर्थिक स्थिति की बात हो या फिर अन्य विदेशी मुद्राओं के फिसलने और उछलने की बात हो जब भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बाजार में मुद्रा (करेंसी) के बारे में कोई भी चर्चा हो। आइए जानते हैं कि अमेरिकी मुद्रा या डॉलर इंडेक्स सभी कारोबारियों के लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
डॉलर इंडेक्स का मतलब क्या है?
डॉलर इंडेक्स सिर्फ अमेरिकी मुद्रा ही नहीं बल्कि दुनिया की 6 प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की मजबूती आर कमजोरी के आकलन का इंडेक्स है। इन 6 अलग-अलग करेंसियों में उन देशों की मुद्राएँ सम्मिलित हैं जो अमेरिका कारोबार में भागीदार हैं। इन 6 मुद्राओं में, यूरो, ब्रिटिश पाउंड, स्वीडिश क्रोना, स्विस फ्रैंक आदि यूरोपीय मुद्राएँ शामिल हैं, साथ ही जापानी येन और कनाडाई डॉलर भी सम्मिलित हैं।
डॉलर इंडेक्स से अमेरिकी डॉलर की मजबूती का संकेत मिलता है। डॉलर इंडेक्स जितना चढ़ता है अमेरिकी मुद्रा अन्य मुद्राओं की तुलना में मजबूत होती है। वहीं डॉलर इंडेक्स के फिसलने से यह माना जाता है कि अमेरिकी मुद्रा कमजोर हो रही है।
यह भी पढ़ें: ७ वित्तीय नियम
डॉलर इंडेक्स में अन्य मुद्राओं का वेटेज
डॉलर इंडेक्स पर हर मुद्रा के विनिमय दर (एक्सचेंज रेट) का अलग प्रभाव पड़ता है। इस मामले में सर्वाधिक वेटेज यूरो को दिया जाता है जबकि स्विस फ्रैंक का न्यूनतम वेटेज होता है।
यूरो 57.6%, जापानी येन 13.6%, ब्रिटिश पाउंड 11.9%, कैनेडियन डॉलर का वेटेज 9.1% है। वहीं स्वीडिश क्रोना 4.2% का वेटेज रखता है और स्विस बैंक 3.6% का।
इसका सीधा मतलब है जिस करेंसी का जितना अधिक वेटेज है उस करेंसी के उतार-चढ़ाव का इंडेक्स पर सर्वाधिक असर पड़ेगा।
डॉलर इंडेक्स के इतिहास पर नजर
1973 में अमेरिका की सेंट्रल बैंक यूएस फेडरल रिज़र्व ने डॉलर इंडेक्स की शुरुआत की थी और उसका आधार (बेस) 100 रखा था। तब से लेकर आज तक डॉलर इंडेक्स में सिर्फ एक बार परिवर्तन किया गया है जब यूरोप के सभी देशों ने मिलकर एक साझा मुद्रा का चलन शुरू किया था। फ्रांसीसी फ्रैंक, जर्मन मार्क, इटालियन लीरा, डच गिल्डर और बेल्जियम फ्रैंक आदि के स्थान पर यूरोप की साझा मुद्रा यूरो को इंडेक्स में सम्मिलित किया गया था। शुरुआत के समय से ही लेकर अब तक डॉलर इंडेक्स 90 से 110 अंकों के बीच बना रहा है। इसका उच्चतम स्तर 1984 में 165 अंकों के साथ था। 2007 में मंदी के दौर में इसका न्यूनतम स्तर आया 70 अंकों का था।
डॉलर इंडेक्स महत्वपूर्ण क्यों है?
पूरी दुनिया की नज़र जिस इंडेक्स पर बनी रहती है। इसका सबसे बड़ा कारण है अंतरराष्ट्रीय कारोबार अमेरिकी डॉलर में किया जाता है। यूएस फेड के जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार 1999 से लेकर 2019 के बीच अमेरिकी महाद्वीप में 96% कारोबार डॉलर में हुआ था। यूएस फेड की मानें तो 2021 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देशों द्वारा घोषित किए गए कुल विदेशी मुद्रा भंडार का 60% भाग अमेरिकी डॉलर का है।
US Dollar Index Explained (USDX / DXY)
Importance of Dollar Index: जब भी अंतरराष्ट्रीय कारोबार की चर्चा होती है तो डॉलर इंडेक्स का आकलन जरूर होता है। फिर चाहे उसमें यूरोपीय यूरो या पाउंड के चढ़ने-उतरने की बात हो, रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद बाजार में मंदी की बात हो, चीन और रूस की आर्थिक स्थिति की बात हो या फिर अन्य विदेशी मुद्राओं के फिसलने और उछलने की बात हो जब भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बाजार में मुद्रा (करेंसी) के बारे में कोई भी चर्चा हो। आइए जानते हैं कि अमेरिकी मुद्रा या डॉलर इंडेक्स सभी कारोबारियों के लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
डॉलर इंडेक्स का मतलब क्या है?
डॉलर इंडेक्स सिर्फ अमेरिकी मुद्रा ही नहीं बल्कि दुनिया की 6 प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की मजबूती आर कमजोरी के आकलन का इंडेक्स है। इन 6 अलग-अलग करेंसियों में उन देशों की मुद्राएँ सम्मिलित हैं जो अमेरिका कारोबार में भागीदार हैं। इन 6 मुद्राओं में, यूरो, ब्रिटिश पाउंड, स्वीडिश क्रोना, स्विस फ्रैंक आदि यूरोपीय मुद्राएँ शामिल हैं, साथ ही जापानी येन और कनाडाई डॉलर भी सम्मिलित हैं।
डॉलर इंडेक्स से अमेरिकी डॉलर की मजबूती का संकेत मिलता है। डॉलर इंडेक्स जितना चढ़ता है अमेरिकी मुद्रा अन्य मुद्राओं की तुलना में मजबूत होती है। वहीं डॉलर इंडेक्स के फिसलने से यह माना जाता है कि अमेरिकी मुद्रा कमजोर हो रही है।
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डॉलर इंडेक्स में अन्य मुद्राओं का वेटेज
डॉलर इंडेक्स पर हर मुद्रा के विनिमय दर (एक्सचेंज रेट) का अलग डॉलर वैश्विक मुद्रा क्यों प्रभाव पड़ता है। इस मामले में सर्वाधिक वेटेज यूरो को दिया जाता है जबकि स्विस फ्रैंक का न्यूनतम वेटेज होता है।
यूरो 57.6%, जापानी येन 13.6%, ब्रिटिश पाउंड 11.9%, कैनेडियन डॉलर का वेटेज 9.1% है। वहीं स्वीडिश क्रोना 4.2% का वेटेज रखता है और स्विस बैंक 3.6% का।
इसका सीधा मतलब है जिस करेंसी का जितना अधिक वेटेज है उस करेंसी के उतार-चढ़ाव का इंडेक्स पर सर्वाधिक असर पड़ेगा।
डॉलर इंडेक्स के इतिहास पर नजर
1973 में अमेरिका की सेंट्रल बैंक यूएस फेडरल रिज़र्व ने डॉलर इंडेक्स की शुरुआत की थी और उसका आधार (बेस) 100 रखा था। तब से लेकर आज तक डॉलर इंडेक्स में सिर्फ एक बार परिवर्तन किया गया है जब यूरोप के सभी देशों ने मिलकर एक साझा मुद्रा का चलन शुरू किया था। फ्रांसीसी फ्रैंक, जर्मन मार्क, इटालियन लीरा, डच गिल्डर और बेल्जियम फ्रैंक आदि के स्थान पर यूरोप की साझा मुद्रा यूरो को इंडेक्स में सम्मिलित किया गया था। शुरुआत के समय से ही लेकर अब तक डॉलर इंडेक्स 90 से 110 अंकों के बीच बना रहा है। इसका उच्चतम स्तर 1984 में 165 अंकों के साथ था। 2007 में मंदी के दौर में इसका न्यूनतम स्तर आया 70 अंकों का था।
डॉलर इंडेक्स महत्वपूर्ण क्यों है?
पूरी दुनिया की नज़र जिस इंडेक्स पर बनी रहती है। इसका सबसे बड़ा कारण है अंतरराष्ट्रीय कारोबार अमेरिकी डॉलर में किया जाता है। यूएस फेड के जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार 1999 से लेकर 2019 के बीच अमेरिकी महाद्वीप में 96% कारोबार डॉलर में हुआ था। यूएस फेड की मानें तो 2021 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देशों द्वारा घोषित किए गए कुल विदेशी मुद्रा भंडार का 60% भाग अमेरिकी डॉलर का है।
रुपया इतना क्यों गिर रहा?: SBI चेयरमैन ने बताई वजह, बोले- डॉलर के मुकाबले हमसे बेहतर सिर्फ दो देशों की करेंसी
भारतीय स्टेट बैंक के अध्यक्ष दिनेश खारा ने कहा कि वैश्विक मंदी जिसकी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक की ओर से आशंका जताई जा रही है, भारत में अन्य देशों की तुलना में अधिक असर नहीं छोड़ेगा।
रुपये की गिरावट पर बोलते हुए भारतीय स्टेट बैंक के अध्यक्ष दिनेश खारा ने कहा कि डॉलर सूचकांक के मजबूत होने के कारण भारतीय रुपया अनिवार्य रूप से कमजोर हुआ है लेकिन अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं की तुलना में इसकी पकड़ अच्छी है। ग्लोबल मार्केट में मजबूती और कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के बीच शुक्रवार को रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 82.19 पर बंद हुआ।
खारा ने कहा कि भारतीय रुपया काफी अच्छा कर रहा है। उन्होंने कहा, "हमसे बेहतर केवल इंडोनेशिया और ब्राजील हैं। जो आम तौर पर एक कमोडिटी आधारित अर्थव्यवस्था हैं। इसलिए केवल दो मुद्राएं हैं जिन्होंने हमसे बेहतर प्रदर्शन किया।"
उन्होंने कहा, "रुपये में कमजोरी का मुख्य कारण अनिवार्य रूप से डॉलर इंडेक्स का मजबूत होना है।
भारतीय स्टेट बैंक के अध्यक्ष दिनेश खारा ने कहा कि वैश्विक मंदी जिसकी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक की ओर से आशंका जताई जा रही है, भारत में अन्य देशों की तुलना में अधिक असर नहीं छोड़ेगा।
खारा ने शुक्रवार को वाशिंगटन में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक की वार्षिक बैठक डॉलर वैश्विक मुद्रा क्यों के दौरान एक साक्षात्कार में बताया कि 6.8 प्रतिशत की अनुमानित विकास दर और मुद्रास्फीति पर बहुत हद तक नियंत्रण के साथ भारत काफी अच्छा कर रहा है।
उन्होंने कहा "मुख्य रूप से यहां (भारत) में मांग के मामले में आवक दिख रही है यह सकल घरेलू उत्पाद का एक महत्वपूर्ण घटक है और अनिवार्य रूप से घरेलू अर्थव्यवस्था की मजबूती इस पर निर्भर करती है। इसलिए इस दृष्टिकोण से मुझे लगता है कि वैश्विक मंदी का हम पर प्रभाव तो पड़ेगा पर यह उतना तीक्ष्ण नहीं होगा जितना विश्व की जुड़ी हुई अर्थव्यवस्थाओं के लिए होगा। भारतीय अर्थव्यवस्था पर यह सामान्य असर छोड़ेगा।
उन्होंने कहा "अगर हम बीटा फैक्टर को देखें तो शायद भारतीय अर्थव्यवस्था का बीटा फैक्टर कुछ अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में बहुत कम होगा जिनके पास निर्यात के एक महत्वपूर्ण घटक उपलब्ध हैं।
खारा ने कहा, “वैश्विक अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति को ध्यान में रखते हुए भारत अपनी 6.8 प्रतिशत की अनुमानित विकास दर और वैश्विक बाधाओं के बावजूद मुद्रास्फीति ‘काफी नियंत्रण में’ रखते हुए बेहतर कर रहा है।
एसबीआई चेयरमैन के अनुसार मुद्रास्फीति का प्राथमिक कारण मांग आधारित नहीं है। उन्होंने कहा कि यह अनिवार्य रूप से आपूर्ति पक्ष से आ रही मुद्रास्फीति है।
उन्होंने कहा। "अगर हम वास्तव में मुद्रास्फीति के आपूर्ति-पक्ष को देखें, तो हमारे पास एक ऐसी स्थिति है जहां क्षमता उपयोग केवल 71 प्रतिशत है। ऐसे में क्षमता में सुधार के लिए पर्याप्त जगह उपलब्ध है। आपूर्ति डॉलर वैश्विक मुद्रा क्यों शृंखला में व्यवधान अनिवार्य रूप से वैश्विक प्रतिकूलताओं के कारण आया है इसने कच्चे तेल की कीमतों पर भी प्रभाव डाला है।
एसबीआई चेयरमैन ने कहा कि कुल मिलाकर दुनिया भर की सभी अर्थव्यवस्थाएं किसी न किसी परेशानी से से गुजर रही हैं और सरकार इन कारकों से निपटने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में भारत के विकास की संभावनाओं में सुधार की उम्मीद है।
विस्तार
रुपये की गिरावट पर बोलते हुए भारतीय स्टेट बैंक के अध्यक्ष दिनेश खारा ने कहा कि डॉलर सूचकांक के मजबूत होने के कारण भारतीय रुपया अनिवार्य रूप से कमजोर हुआ है लेकिन अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं की तुलना में इसकी पकड़ अच्छी है। ग्लोबल मार्केट में मजबूती और कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के बीच शुक्रवार को रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 82.19 पर बंद हुआ।
खारा ने कहा कि भारतीय रुपया काफी अच्छा कर रहा है। उन्होंने कहा, "हमसे बेहतर केवल इंडोनेशिया और ब्राजील हैं। जो आम तौर पर एक कमोडिटी आधारित अर्थव्यवस्था हैं। इसलिए केवल दो मुद्राएं हैं जिन्होंने हमसे बेहतर प्रदर्शन किया।"
उन्होंने कहा, "रुपये में कमजोरी का मुख्य कारण अनिवार्य रूप से डॉलर इंडेक्स का मजबूत होना है।
भारतीय स्टेट बैंक के अध्यक्ष दिनेश खारा ने कहा कि वैश्विक मंदी जिसकी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक की ओर से आशंका जताई जा रही है, भारत में अन्य देशों की तुलना में अधिक असर नहीं छोड़ेगा।
खारा ने शुक्रवार को वाशिंगटन में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक की वार्षिक बैठक के दौरान एक साक्षात्कार में बताया कि 6.8 प्रतिशत की अनुमानित विकास दर और मुद्रास्फीति पर बहुत हद तक नियंत्रण के साथ भारत काफी अच्छा कर रहा है।
उन्होंने डॉलर वैश्विक मुद्रा क्यों कहा "मुख्य रूप से यहां (भारत) में मांग के मामले में आवक दिख रही है यह सकल घरेलू उत्पाद का एक महत्वपूर्ण घटक है और अनिवार्य रूप से घरेलू अर्थव्यवस्था की मजबूती इस पर निर्भर करती है। इसलिए इस दृष्टिकोण डॉलर वैश्विक मुद्रा क्यों से मुझे लगता है कि वैश्विक मंदी का हम पर प्रभाव तो पड़ेगा पर यह उतना तीक्ष्ण नहीं होगा जितना विश्व की जुड़ी हुई अर्थव्यवस्थाओं के लिए होगा। भारतीय अर्थव्यवस्था पर यह सामान्य असर छोड़ेगा।
उन्होंने कहा "अगर हम बीटा डॉलर वैश्विक मुद्रा क्यों फैक्टर को देखें तो शायद भारतीय अर्थव्यवस्था का बीटा फैक्टर कुछ अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में बहुत कम होगा जिनके पास निर्यात के एक महत्वपूर्ण घटक उपलब्ध हैं।
खारा ने कहा, “वैश्विक अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति को ध्यान में रखते हुए भारत अपनी 6.8 प्रतिशत की अनुमानित विकास दर और वैश्विक बाधाओं के बावजूद मुद्रास्फीति ‘काफी नियंत्रण में’ रखते हुए बेहतर कर रहा है।
एसबीआई चेयरमैन के अनुसार मुद्रास्फीति का प्राथमिक कारण मांग आधारित नहीं है। उन्होंने कहा कि यह अनिवार्य रूप से आपूर्ति पक्ष से आ रही मुद्रास्फीति है।
उन्होंने कहा। "अगर हम वास्तव में मुद्रास्फीति के आपूर्ति-पक्ष को देखें, तो हमारे पास एक ऐसी स्थिति है जहां क्षमता उपयोग केवल 71 प्रतिशत है। ऐसे में क्षमता में सुधार के लिए पर्याप्त जगह उपलब्ध है। आपूर्ति शृंखला में व्यवधान अनिवार्य रूप से वैश्विक प्रतिकूलताओं के कारण आया है इसने कच्चे तेल की कीमतों पर भी प्रभाव डाला है।
एसबीआई चेयरमैन ने कहा कि कुल मिलाकर दुनिया भर की सभी अर्थव्यवस्थाएं किसी न किसी परेशानी से से गुजर रही हैं और सरकार इन कारकों से निपटने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में भारत के विकास की संभावनाओं में सुधार की उम्मीद है।
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