बाजार की उठापटक पसंद नहीं तो रिटायरमेंट फंड सही
रिटायरमेंट फंड की श्रेणी में 25 फंड हैं, जो करीब 16,775 करोड़ रुपये की परिसंपत्ति संभाल रहे हैं। इनमें सबसे बड़े फंड यूटीआई, एचडीएफसी और निप्पॉन इंडिया हैं। पिछले दिनों यूनियन ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी (एएमसी) भी इसमें दाखिल हो गई।
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के अक्टूबर, 2017 में जारी परिपत्र के अनुसार सभी रिटायरमेंट फंड समाधान केंद्रित योजनाओं की श्रेणी में आते हैं। सेबी की एकमात्र शर्त यह है कि उनकी लॉक-इन अवधि यानी निवेश बनाए रखने की अवधि पांच साल होनी चाहिए। अगर पांच साल से पहले ही निवेशक रिटायर हो जाता है तो यह शर्त लागू नहीं होगी।
इनमें से हर फंड में परिसंपत्ति का आवंटन बिल्कुल अलग हो सकता है। कुछ विशुद्ध इक्विटी फंड होते हैं, जिनमें 90 फीसदी से अधिक आवंटन इक्विटी के लिए किया जाता है। दूसरे हाइब्रिड फंड जैसे होते हैं, जिनमें 18.8 से 82.5 फीसदी तक आवंटन इक्विटी में हो सकता है।
एसोसिएशन ऑफ म्युचुअल फंड्स इन इंडिया (एम्फी) के आंकड़ों के मुताबिक देश में इक्विटी म्युचुअल फंड में निवेश करने वाले केवल 46 फीसदी लोग ही दो साल से अधिक समय तक निवेश रखते हैं। ज्यादातर लोग बाजार में पहली गिरावट आने या फंड का प्रदर्शन खराब होने पर एक ही झटके में फंड से निकल जाते हैं।
‘लॉक इन’ अनिवार्य होने पर ऐसे निवेशकों को फायदा होगा। यूनियन एएमसी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी जी प्रदीप कुमार कहते हैं, ‘पांच साल का लॉक-इन हुआ तो निवेशकों को उतने समय तक अपनी रकम फंसानी ही होगी। इससे उनकी रकम को बढ़ने का पूरा मौका मिलेगा।’
इस तरह के फंड में पैसा लगाने के लिए पहले दिमाग को भी तैयार करना पड़ता है। फंड्सइंडिया डॉट कॉम के शोध पमुख अरुण कुमार समझाते हैं, ‘रिटायरमेंट या किसी खास मकसद से फंड में निवेश करने वाले लोग इस रकम का टार्गेट मैच्योरिटी फंड्स में निवेश करने के फ़ायदे क्या हैं? इस्तेमाल दूसरे कामों के लिए मुश्किल से ही करते हैं।’
हालांकि पांच साल के लॉक-इन की दिक्कतें भी हैं। डिजर्व के सह-संस्थापक वैभव पोरवाल कहते हैं, ‘निवेशक खराब प्रदर्शन करने वाले फंड में लंबे समय के लिए फंस भी सकते हैं।’ये फंड महंगे भी हैं। सेबी में पंजीकृत निवेशक सलाहकार व पर्सनल फाइनैंस प्लान के संस्थापक दीपेश राघव बताते हैं, ‘इनके नियमित प्लान में एक्सपेंश रेश्यो बहुत अधिक होता है।’ ज्यादातर नियमित प्लान में एक्सपेंस रेश्यो 2 फीसदी से अधिक होता है और 2.69 फीसदी तक जा सकता है।
पांच साल की लॉक-इन अवधि के अलावा इन फंड को ओपन-एंड शुद्ध इक्विटी या हाइब्रिड फंड से अलग करने के लिए अलावा कुछ खास नहीं होता। प्रदर्शन के मामले में भी उनमें फर्क करना मुश्किल होता है। पोरवाल बताते हैं, ’25 रिटायरमेंट फंडों में से 15 बमुश्किल तीन साल पहले शुरू हुए हैं, इसलिए उनके प्रदर्शन की परख कठिन होगी।
मगर इसी अवधि के हाइब्रिड और फ्लेक्सी-कैप फंड के बनिस्बत इनका एक और तीन साल का रॉलिंग प्रतिफल बहुत अलग नहीं है।’
चूंकि ये सक्रिय फंड हैं, इसलिए फंड प्रबंधक खराब प्रतिभूति भी चुन सकते हैं। इनमें कोई खास कर लाभ भी नहीं मिलता। इन फंडों में रिटायरमेंट के लिए खास तौर पर बनाई गई योजनाओं जैसे राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) की तरह खूबियां नहीं होतीं।
एनपीएस में आपकी रकम तब तक लगी रहती है, जब टार्गेट मैच्योरिटी फंड्स में निवेश करने के फ़ायदे क्या हैं? तक आप रिटायर नहीं होते। उससे पहले खास मामलों में ही आप कुछ हिस्सा निकाल सकते हैं। इस तरह रिटायरमेंट तक बचत करते रहने के लिए आप मजबूर रहते हैं। लेकिन रिटायरमेंट फंड में लॉक-इन अवधि केवल पांच साल है। पांच साल पूरे होने के बाद रकम का इस्तेमाल दूसरे कामों के लिए किया जा सकता है। एनपीएस में रिटायरमेंट के बाद ताउम्र हर साल निश्चित रकम मिलती रहती है।
मगर रिटायरमेंट फंड में यह जरूरी नहीं है। एनपीएस में निवेशक संपत्ति का आवंटन तय कर सकता है या उसकी उम्र के हिसाब से खुद ही आवंटन हो जाता है।
म्युचुअल फंड में परिसंपत्ति आवंटन को एक फंड में तब्दील नहीं किया जा टार्गेट मैच्योरिटी फंड्स में निवेश करने के फ़ायदे क्या हैं? सकता है। रिटायरमेंट फंड में निवेशक परिसंपत्ति के आवंटन को नियंत्रित नहीं होता है। संपत्ति का आवंटन किसी निवेशक की आयु पर निर्भर नहीं करता है। यह टार्गेट मैच्योरिटी फंड्स में निवेश करने के फ़ायदे क्या हैं? 28 साल और 58 साल व्यक्ति के लिए समान है। यदि निवेशक दूसरे फंड से संपत्ति के आवंटन का प्रबंधन करता है तो ऐसे में एक फंड से दूसरे फंड में जाने से कर की देनदारी बनती है। हालांकि एनपीएस में ऐसे मुद्दे नहीं हैं। निवेशक विशेष तौर पर इक्विटी में नया निवेश करने वाले और लंबी अवधि तक राशि निवेशित रखने वाले इन फंडों के लॉक इन से लाभान्वित हो सकते हैं।
छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दरों में कटौती से चिंतित न टार्गेट मैच्योरिटी फंड्स में निवेश करने के फ़ायदे क्या हैं? हों, इसमें करें निवेश, मिलेगा बेहतर रिटर्न
सरकार ने छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दर में बड़ी कटौती की है। इस हालात में आपके लिए निवेश के लिए भारत बॉन्ड ईटीएफ बेहतर विकल्प है।
- बेहतर टैक्स रिटर्न की चाहत रखते हैं और फिक्सड इनकम में हाई सेक्युरिटी की तलाश में हैं
- भारत बॉन्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (टार्गेट मैच्योरिटी फंड्स में निवेश करने के फ़ायदे क्या हैं? ईटीएफ) में निवेश करने पर विचार कर सकते हैं
- छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज टार्गेट मैच्योरिटी फंड्स में निवेश करने के फ़ायदे क्या हैं? दर में 1.4% तक की कटौती की गई है
मुंबई: मोदी सरकार द्वारा छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दर में 1.4% तक की कटौती के बाद एक अप्रैल 2020 सभी छोटी बचत योजनाओं पर रिटर्न में गिरावट हो गई है। जो बेहतर टैक्स रिटर्न की चाहत रखते हैं और फिक्सड इनकम में हाई सेक्युरिटी की तलाश में हैं। वे भारत बॉन्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) में निवेश करने पर विचार कर सकते हैं। जिसमें सरकारी कंपनियों की ऋण सेक्युरिटीज शामिल हैं। टार्गेट मैच्योरिटी फंड्स में निवेश करने के फ़ायदे क्या हैं? चूंकि कोरोनो वायरस प्रकोप से शेयर बाजारों में उथल-पुथल हुआ। इसलिए धन सलाहकार ने निवेशकों को भारत बॉन्ड ईटीएफ को अपने पोर्टफोलियो में शामिल करने के लिए का सुझाव दे रहे हैं।
भारत बॉन्ड ईटीएफ बेहतर विकल्प
सेनर्जी कैपिटल के मैनेजिंग डायरेक्टर विक्रम दलाल के हवाले से इकोनॉमिक टाइम्स कहा कि कोरोना वायरस के चलते आगे जोखिम का सामना करना पड़ रहा है और सुरक्षा के लिए जरूरी है। क्रेडिट रिस्क एवॉर्शन की वजह से AAA-रेटेड सरकारी कंपनियों की बास्केट में निवेश करना बेहतर होगा जिसमें टारगेट मैच्योरिटी की तारीख और कम लागत सबसे अच्छा विकल्प है। भारत बॉन्ड ईटीएफ, जो भारत का बॉन्ड फंड एक्सचेंज पर कारोबार करता है, इसमें सरकार द्वारा संचालित कंपनियों द्वारा जारी किए गए बॉन्ड होते हैं जिनमें AAA क्रेडिट रेटिंग सबसे अधिक होती है। पोर्टफोलियो में कुछ कंपनियां आरईसी, नाबार्ड और पीएफसी की पसंद हैं।
दो मैच्योर विकल्प
यह फंड दो मैच्युरिटी विकल्पों के साथ आता है; एक टार्गेट मैच्योरिटी फंड्स में निवेश करने के फ़ायदे क्या हैं? 17 अप्रैल 2023 को मैच्योर होगा और दूसरा 17 अप्रैल 2030 को, क्रमशः 6.टार्गेट मैच्योरिटी फंड्स में निवेश करने के फ़ायदे क्या हैं? 35% और 7.43% फायदे के साथ। चूंकि डेट फंड इंडेक्सेशन बेनेफिट्स के लिए योग्य हैं, ऐसे में ईटीएफ रखने वाले निवेशक मैच्योरिटी तक क्रमश: 5.81% और 6.73% का टैक्स रिटर्न प्राप्त कर सकते हैं, मान लें कि मुद्रास्फीति सालाना 4% होगी।
फिक्स्ड डिपॉजिट और टैक्स-फ्री बॉन्ड से बेहतर
वेल्थ मैनेजर के अनुसार, भारत बॉन्ड ईटीएफ, फिक्स्ड डिपॉजिट और टैक्स-फ्री बॉन्ड दोनों के रिटर्न और लिक्विडिटी से बहुत बेहतर है। वर्तमान में, भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) एफडी 5.7% प्री टैक्स रिटर्न प्रदान करता है। किसी व्यक्ति के लिए, जो 30% टैक्स ब्रैकेट में है, उसका पोस्ट टैक्स रिटर्न 3.9% होगा। इस बीच, टैक्स फ्री बॉन्ड सेकेंड्री मार्केट में उपलब्ध है। 5.25-5.75% के बीच फायदा होगा। यह मैच्योरिटी पीरियड पर निर्भर करेगा।
मैच्योरिटी तक खरीदें भारत बॉन्ड ईटीएफ
विश्लेषकों का कहना है कि निवेशकों को भारत बॉन्ड ईटीएफ मैच्योरिटी तक रखने के इरादे से खरीदना चाहिए क्योंकि अंतरिम में इसके मूल्यों में परिवर्तन हो सकता है। हालांकि, आपके पास बाजार में बेचकर रुपए निकालने का विकल्प है। इस उत्पाद में लिक्वीडिटी अन्य ईटीएफ की तुलना में बहुत बेहतर है।
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लोग अक्सर अपना पैसा निवेश टार्गेट मैच्योरिटी फंड्स में निवेश करने के फ़ायदे क्या हैं? करने के लिए अच्छे विकल्पों की तलाश में रहते हैं। और यह सही भी है, क्योंकि अच्छे विकल्प का मतलब अच्छा मुनाफा होता है। लोग अपना पैसा अलग-अलग जगहों पर लगाते हैं, जिसमें बाजार भी निवेश की जगह है। ऐसे में बाजार टार्गेट मैच्योरिटी फंड्स में निवेश करने के फ़ायदे क्या हैं? में निवेश के कई विकल्प मौजूद हैं। इनमें से एक विकल्प है टारगेट मैच्योरिटी फंड।
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