घरेलू ब्रोकरेज फर्म आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज ने अपनी हालिया रिपोर्ट में बताया है कि सेक्टर की अन्य कंपनियों के मुकाबले डेल्हीवरी का कॉस्ट स्ट्रक्चर्स सबसे कम है. कंपनी की सर्विस पर लोगों को काफी भरोसा है. क्योंकि टेक्नोलॉजी और भरोसे के मामले में भी कंपनी काफी आगे है. इसके अलावा रिपोर्ट में बताया गया है कि मैनेजमेंट काफी एक्टिव है. समय-समय पर काफी अच्छे फैसले लेते है. ऐसे में निवेशकों का भरोसा और बढ़ सकता है.
Delhivery Share Price: 16 December से FTSE में शामिल होगा डेल्हीवरी का शेयर, जानिए इससे क्यो होगा?
Delhivery Stock Price : FTSE Global Equity Index एक ईटीएफ यानी एक्टिव फंड के मुकाबले ETF का प्रदर्शन एक्टिव फंड के मुकाबले ETF का प्रदर्शन एक्सचेंज ट्रेडिंग फंड है. ये समय-समय पर अपने पोर्टफोलियो में बदलाव करता है. कुछ शेयरों को शामिल करता है तो कुछ को ड्रॉप करता है. इसी एक्साइज के तहत अब डेल्हीवरी के शेयर को शामिल किया जा रहा है.
डेल्हीवरी के शेयर खरीदने वालों के लिए अच्छी खबर है. दरअसल FTSE में री-बैलेंसिंग होने वाली है. इसके बाद डेल्हीवरी के शेयर में तेजी आ सकती है. क्योंकि, इससे शेयर में इन्वेस्टमेंट बढ़ने की उम्मीद एक्टिव फंड के मुकाबले ETF का प्रदर्शन है. आपको बता दें कि FTSE Global Equity Index एक ईटीएफ यानी एक्सचेंज ट्रेडिंग फंड है. ये समय-समय पर अपने पोर्टफोलियो में बदलाव करता है. कुछ शेयरों को शामिल करता है तो कुछ को ड्रॉप करता है. इसी एक्साइज के तहत अब डेल्हीवरी के शेयर को शामिल किया जा रहा है.
ढेर सारे शेयरों में एक साथ निवेश
यदि बीएसई 500 इंडेक्स को ट्रैक करने वाले किसी इंडेक्स फंड में निवेश करते हैं तो पूरा निवेश बीएसई की टॉप-500 कंपनियों में होगा । यदि निफ्टी 100 इंडेक्स को ट्रैक करने वाले फंड में निवेश करते हैं तो असल में आप एनएसई के टॉप-100 शेयरों में एक साथ निवेश कर रहे होते हैं।
इंडेक्स फंड का एक्सपेंस रेश्यो 0.02-0.2% होता है। यानी आप यदि किसी ऐसे फंड में आप 1 लाख रूपये का निवेश करते हैं तो इसकी लागत सिर्फ 20-200 रुपए बैठेगी। दूसरे एक्टिव फंड का एक्सपेंस रेश्यो 0.एक्टिव फंड के मुकाबले ETF का प्रदर्शन 5-1.0% होने से इनमें 1 लाख रुपए के निवेश पर 500-1,000 रुपए खर्च करने होंगे।यह एक्सपेंस रेश्यो थीमेटिक फण्ड के केस में तो 2 % तक जाता एक्टिव फंड के मुकाबले ETF का प्रदर्शन है
रणनीति में पारदर्शिता
भारी उतार-चढ़ाव वाले मौजूदा दौर में निवेशक रिटर्न के साथ-साथ पोर्टफोलियो में पारदर्शिता भी चाहते हैं। इंडेक्स फंड में उन्ही कंपनियों के शेयर शामिल करने की अनुमति होती है जो संबंधित इंडेक्स में लिस्टेड होती हैं। ऐसे में निवेशकों को पता होता है कि उनका पैसा किन शेयरों में लगाया जा रहा है। इस कारण आप ख़राब कंपनियों में निवेश करने से आटोमेटिक बच जाते हैं।
सभी सेक्टरों के शेयर एक साथ बेहतर रिटर्न नहीं देते। दो साल शानदार रिटर्न देने वाले आईटी कंपनियों के शेयरों में इन दिनों लगातार गिरावट जारी है। दूसरी तरफ FMCG और ऑटो शेयर अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। ऐसे में निवेशक अच्छी संभावना वाले पसंद के सेक्टोरल इंडेक्स में निवेश कर सकते हैं
थीम एक्टिव फंड के मुकाबले ETF का प्रदर्शन आधारित निवेश
कुछ साल से क्लाउड कम्प्यूटिंग, इलेक्ट्रिक व्हीकल और न्यू इकोनॉमीज जैसे थिमैटिक इन्वेस्टमेंट का चलन है। फंड मैनेजर भी ऐसे विषय या थीम पर नजर बनाये रखते हैं जो भविष्य में स्थिरता और तेज ग्रोथ दिखाने में सक्षम हों। इंडेक्स फंड निवेश में ऐसे थिमैटिक इनोवेशन का लाभ उठाने का मौका देते हैं। और लगातार ऐसे थीम आधारित इंडेक्स फण्ड लांच करते रहते है जैसे आईटी इंडेक्स फण्ड , फार्मा इंडेक्स फण्ड आदि
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By ANKIT SACHAN
मेरा नाम अंकित सचान है और मूलतः मैं कानपुर उत्तर प्रदेश जिले के घाटमपुर तहसील से सम्बन्ध रखता हूँ मैंने B.tech Electrical Engineering की शिक्षा उत्तर प्रदेश के सरकारी Engineering कॉलेज (Bundelkhand Institute of Engineering & Technology Jhansi ) ली है तदुपरांत मैंने प्राइवेट सेक्टर को चुना और अपनी नौकरी शुरू की अब तक मैँने २ कंपनियों में नौकरी की है मैंने Ramky Enviro Engineers Ltd में 8 वर्ष तथा PI Industries में 2 साल से काम कर रहा हूँ
अपने पोर्टफोलियो में पैसिव फंड पर जोर देना बेहतर
एसपीआईवीए (एसऐंडपी सूचकांक बनाम एक्टिव फंड) का नया स्कोरकार्ड सामने आ चुका है। इससे एक अनूठे रुझान का पता चलता है,जो पिछले कई साल से तैयार हो रहा है। दिसंबर, 2021 मेंं खत्म हुए 10 साल के समय में 67.6 प्रतिशत लार्ज-कैप फंडों ने अपने एक्टिव फंड के मुकाबले ETF का प्रदर्शन बेंचमार्क (एसऐंडपी बीएसई 100) के मुकाबले खराब प्रदर्शन किया है। इसके उलट मिड-कैप और स्मॉल-कैप फंडों ने थोड़ा बेहतर प्रदर्शन किया है, हालांकि उनका प्रदर्शन भी बेंचमार्क (एसऐंडपी बीएसई 400 मिड स्मॉल कैप सूचकांक) के मुकाबले खराब ही रहा है और करीब 56.1 प्रतिशत एक्टिव फंड के मुकाबले ETF का प्रदर्शन फंडों ने बेंचमार्क की तुलना मेंं कमजोर प्रदर्शन किया है।
बेहतर प्रदर्शन के रुझान कम
स्कोरकार्ड मेंं दो रुझान एकदम साफ नजर आए हैं। मॉर्निंगस्टार इन्वेस्टमेंट एडवाइजर इंडिया के निदेशक (प्रबंधक एक्टिव फंड के मुकाबले ETF का प्रदर्शन अनुसंधान) कौस्तुभ बेलापुरकर कहते हैं, ‘अल्फा का स्तर कम हो रहा है और अपने बेंचमार्क सूचकांक के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन करने वाले फंडों की संख्या भी लगातार गिरती जा रही है।’
ऐसा लगता नहीं है कि यह रुझान जल्द बदलेगा। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के पास पंजीकृत निवेश सलाहकार और पर्सनलफाइनैंसप्लान के संस्थापक दीपेश राघव कहते हैं, ‘भविष्य में भी लार्ज-कैप के क्षेत्र में फंड मैनेजरों के लिए अपने बेंचमार्क को मात देना बेहद मुश्किल होने वाला है।’ जिस क्षेत्र पर सबकी नजर रहती हैं वहां सूचना के आधार पर बढ़त हासिल करना मुश्किल है। चुनिंदा फंड प्रबंधक ही बेंचमार्क के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन करते रह सकते हैं। बेलापुरकर ने कहा, ‘जब फंड प्रबंधक चुनने की बात आती है तो निवेशकों को बहुत ध्यान से चयन करना होगा। अगर उन्हेें लगता है कि अपने दम पर ऐसा करने में वे अक्षम हैं तो उन्हें सलाहकार की मदद लेनी चाहिए।’ जिन मिड-कैप और स्मॉल-कैप क्षेत्र पर लोगों की नजर कम रहती है,उनमें बेहतर प्रदर्शन की अधिक संभावना है।
मूल पोर्टफोलियो के लिए पैसिव फंड
अपना मूल पोर्टफोलियो तैयार करना है तो उन पैसिव फंडों का इस्तेमाल करें, जो बाजार पूंजीकरण यानी मार्केट कैप पर आधारित सूचकांकों के हिसाब से होते हैं। निफ्टी 50 आधारित फंड और विविधता वाले अमेरिकी इक्विटी सूचकांक (उपलब्धता के आधार पर शेयर बाजार, एसऐंडपी 500 या नैस्डैक) में से हरेक को 50-50 प्रतिशत का आवंटन करें। इस पोर्टफोलियो के साथ निवेशक बाजार के समान ही प्रदर्शन करने में सक्षम होंगे। पोर्टफोलियो का ज्यादा से ज्यादा हिस्सा मुख्य आवंटन का होना चाहिए। इस रणनीति को लंबे समय तक बनाए रखना आसान है। निवेशक को न तो सही फंड प्रबंधक चुनने की फिक्र करनी है तो न ही यह चिंता करनी है कि फंड प्रबंधक का प्रदर्शन खराब रहने पर नया फंड प्रबंधक कैसे और कौन चुना जाए। जहां तक पोर्टफोलियो के सैटेलाइट हिस्से की बात है तो तो निवेशक अल्फा के लिए कोशिश कर सकता है। यहां निवेशक किसी भी रणनीति के लिए जोखिम ले सकता है जिसके बारे में उसे भरोसा हो कि वह बेहतर होगा मसलन एक्टिव फंड के मुकाबले ETF का प्रदर्शन मिड-कैप, स्मॉल-कैप, मूल्य, वृद्धि, गुणवत्ता, गति आदि। निवेशक एक सक्रिय फंड अथवा फैक्टर आधारित फंड का इस्तेमाल कर यह जोखिम ले सकता है, जहां पोर्टफोलियो का निर्माण निश्चित नियमों के आधार पर किया जाता है।
Indore म्यूचुअल फंड: अक्टूबर में पैसिव फंड्स में ₹10,260 करोड़ का निवेश, एक्टिव में सिर्फ 3,872 करोड़,पहली बार पैसिव फंड्स में एक्टिव से तीन गुना अधिक निवेश, रिटर्न भी बेहतर
मध्यप्रदेश न्यूज़ डेस्क, वर्ष 2022 में 80% एक्टिव लार्जकैप म्यूचुअल फंड्स ने अपने बेचमार्क इंडेक्स यानी सेंसेक्स और निफ्टी से कम रिटर्न दिया. इस वजह से निवेशक पैसिव फंड्स में जमकर निवेश कर रहे हैं. एम्फी की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, अक्टूबर 2022 में पहली बार एक्टिव फंड्स के मुकाबले पैसिव फंड्स में तीन गुना अधिक निवेश आया. एक्टिव फंड्स में 3,872 करोड़ रुपए तो पैसिव फंड्स में इस दौरान लोगों ने 10,260 करोड़ का निवेश किया.
पिछले 2.5 साल से पैसिव फंड्स में लोगों का निवेश लगातार बढ़ रहा है. अगस्त 2019 में पैसिव फंड्स में कुल निवेशित संपत्ति (एयूएम) 1.5 लाख करोड़ रुपए थी, जो अक्टूबर 2022 में 6.40 लाख करोड़ रुपए हो गई. म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री के कुल एयूएम में पैसिव फंड्स की हिस्सेदारी अगस्त 2019 के 6.5% से बढ़कर 16% हो गई है. पिछले दो साल में पैसिव फंड्स में 2.6 लाख करोड़ का निवेश आया. एक्टिव में निवेश 50% घटकर 1.40 लाख करोड़ रह गया.
एक्टिव-पैसिव में अंतर: एक्टिव फंड्स में फंड मैनेजर फैसला करता है कि पैसा किन शेयर्स में लगाया जाए. किस स्टॉक्स -बॉन्ड्स की बिक्री या खरीदारी करनी है. वहीं, पैसिव फंड्स सेंसेक्स और निफ्टी 50 जैसे इंडेक्स में उनके वेटेज के अनुपात में निवेश करते हैं. पैसिव फंड में गोल्ड फंड, एफओएफ, इंडेक्स फंड और ईटीएफ आदि आते हैं.
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सीखें कि स्मार्ट बीटा फंड कैनेलिटीज भार के बिना अनुकूलित अनुक्रमित पर नज़र रखने से सक्रिय और निष्क्रिय प्रबंधन दोनों के फायदे को जोड़ते हैं।
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