मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है?
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मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है?
देश के पास विदेशी मुद्रा भंडार लगातार कम हो रहा है। रुपये की कीमत में गिरावट आ रही है। साथ ही देश का व्यापार घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है। यह सभी बातें आपस में कैसे जुडी हुई हैं? इनमें परिवर्तन होने पर हमारी अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ता है? चलिए इस पूरे मुद्दे को समझते हैं।
विदेशी मुद्रा भंडार
दरअसल विदेशी मुद्रा भंडार में केंद्रीय बैंक, रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) द्वारा रखी गई धनराशि या अन्य परिसंपत्तियां होती हैं। इनमें विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियाँ(FCA), स्वर्ण भंडार, विशेष आहरण अधिकार (SDR) और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के साथ रिज़र्व ट्रेंच शामिल होती हैं। जरूरत पड़ने पर विदेशी मुद्रा भंडार से विदेशी ऋण का भुगतान आसानी से किया जा सकता है।
पिछले कुछ महीनों से विदेशी मुद्रा भंडार लगातार कम हो रहा है। विदेशी मुद्रा भंडार में यह गिरावट पिछले 10 महीनों से आ रही है। अगस्त 2021 के अंत में हमारे केंद्रीय बैंक के पास 640.70 अरब डालर विदेशी मुद्रा भंडार था, जोकि जून 2022 के अंत में गिर कर 588.31 अरब डॉलर हो गया है। विदेशी मुद्रा भंडार पिछले 14 महीनों के निम्न स्तर पर है। जैसा कि निचे चित्र दिखया गया है।
देश के पास ज्यादातर विदेशी मुद्रा भंडार, विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति(FCA) के रूप में ही होता है। यह परिसंपत्तियां एक या एक से अधिक मुद्रा के रूप में भी हो सकती है। लेकिन इन विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों का मूल्यांकन डॉलर में ही किया जाता है। अगस्त 2021 के अंत में देश के पास 578.41 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां थी जोकि मौजूदा समय में घटकर 524.74 अरब डॉलर हो गयी है।
विदेशी मुद्रा भंडार के घटने का असर रुपये की कीमत पर पड़ता है। विदेशी मुद्रा भंडार कम होने पर डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में भी कमी आएगी जैसा कि मौजूदा समय में देखा जा रह है। कल सोमवार को रुपये की कीमत गिर कर 79.43 रुपये प्रति डॉलर के निम्न स्तर पर आ गयी है। रुपये के गिरने पर भारत द्वारा किये जाने वाले वस्तुओं के आयात मूल्य में वृद्धि हो जाएगी और निर्यात मूल्य में कमी आएगी क्योंकि रुपये की कीमत डॉलर के मुकाबले कम हो रही है। जिसके कारण व्यापार घाटा बढ़ेगा जैसा कि मौजूदा समय में देखा गया है। जून के महीने में व्यापार घाटा बढ़कर अब तक के रिकार्ड स्तर 25.6 अरब डॉलर हो गया है।
हालांकि रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने सोमवार को रुपये की कीमत को स्थिर रखने के लिए कुछ देशों जैसे रूस और श्रीलंका के साथ व्यापार रुपये में करने की अनुमति दे दी है, जिससे काफी हद तक रुपये की कीमत पर असर पड़ेगा। मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है? क्योंकि भारत सबसे ज्यादा कच्चे तेल का आयात करता है। रूस तेल का सबसे बड़ा निर्यातक देश है।
भारत तेल की कुल आपूर्ति का बड़ा हिस्सा रूस से आयात करता है। ऐसा संभव हो सकता है कि रूस के साथ रुपये में व्यापार करने पर रुपये की कीमत में और गिरावट न आए और विदेशी मुद्रा भंडार पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़े। लेकिन भारत को अब भी यूरोप और एशिया के कई देशों के साथ डॉलर में ही व्यापार करना होगा।
विदेशी मुद्रा भंडार के बढ़ने पर रुपये की कीमत में मजबूती आती है। जिसके परिणामस्वरूप देश की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है और रुपये की कीमत में स्थिरता बनी रहती है। साथ ही विदेश में निवेश करने वाले लोगों को भी बहुत ज्यादा फायदा पहुँचता है।
भारत की आजादी के वक्त एक डॉलर की कीमत थी चार रुपये, आज करीब 80, पढ़ें 75 वर्ष में कैसे हुआ बदलाव
जुलाई 2022 में भारतीय रुपया पहली बार अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 80 के निचले स्तर पर फिसल गया क्योंकि आपूर्ति प्रभावित होने के चलते कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों ने अमेरिकी डॉलर की मांग को बढ़ावा दिया।
रुपये ने डॉलर तोड़ा अपना पिछला रिकॉर्ड कर 79.99 के निचले स्तर पर पहुंच गया है।
Rupee’s Journey Since India’s Independence: भारत अपनी आजादी के 75वें वर्ष (75th Independence Day) का जश्न मना रहा है और आने वाले वर्षों के दौरान आर्थिक विकास को ऊंचाइयों पर ले जाने के सपने देख रहा है। अर्थव्यवस्था के अन्य पहलुओं को किनारे रखते हुए आइए देखते हैं कि भारतीय रुपया का 1947 के बाद से अब तक का सफर कैसा रहा है।
किसी देश की मुद्रा उसके आर्थिक विकास का आकलन करने का एक मुख्य घटक होती है। बीते 75 सालों में हमारे देश ने अपार प्रगति की है और लगातार प्रगति के पथ पर अग्रसर है। लेकिन, देश की मुद्रा रुपये में लगातार गिरावट दर्ज हो रही है। रुपये के अवमूल्यन का नतीजा यह है कि आज रुपया लगभग 80 रुपये प्रति डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है।
पहली बार एक डॉलर की कीमत 4.76 रुपए: भारत को जब 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली। उस समय एक डॉलर की कीमत एक रुपए हुआ करती थी, लेकिन जब भारत स्वतंत्र हुआ तब उसके मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है? पास उतने पैसे नहीं थे कि अर्थव्यवस्था को चलाया जा सके। उस समय देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली सरकार ने विदेशी व्यापार को बढ़ाने के लिए रुपए की वैल्यू को कम करने का फैसला किया। तब पहली बार एक डॉलर की कीमत 4.76 रुपए हुई थी।
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1962 तक रुपये की वैल्यू में कोई बदलाव नहीं हुआ, लेकिन उसके मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है? बाद 1962 और 1965 के युद्ध के बाद देश की अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका लगा और 1966 में विदेशी मुद्रा बाजार में भारतीय रुपए की कीमत 6.36 रुपए प्रति डॉलर हो गई। 1967 आते-आते सरकार ने एक बार फिर से रुपए की कीमत को कम करने का फैसला किया, जिसके बाद एक डॉलर की कीमत 7.50 रुपए हो गई।
RBI ने दो फेज में रुपए का अवमूल्यन किया: 1991 में एक बार फिर भारत में गंभीर आर्थिक संकट आया। जिसके बाद देश अपने आयातों का भुगतान करने और अपने विदेशी ऋण चुकाने की स्थिति में नहीं था। इस संकट को टालने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने दो फेज में रुपए का अवमूल्यन किया और उसकी कीमत 9 प्रतिशत और 11 प्रतिशत घटाई। अवमूल्यन के बाद अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए का मूल्य लगभग 26 था।
रिसर्च एनालिस्ट दिलीप परमार ने जानकारी दी कि 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद से रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले CAGR (चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर) पर 3।74 प्रतिशत की दर से गिर रहा है। 2000 से 2007 के बीच, रुपया एक हद तक स्थिर हो गया जिसके कारण देश में पर्याप्त विदेशी निवेश आया। हालांकि, बाद में 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान इसमें गिरावट आई।
फॉरेन रिज़र्व का रुपए पर असर: 2009 के बाद से रुपए का मूल्यह्रास शुरू हुआ, जिसके बाद वह 46.5 से अब 79.5 पर पहुंच गया। डॉलर के मुकाबले रुपये के लुढ़कने की सबसे बड़ी वजह फॉरेन रिज़र्व में गिरावट होती है। अगर फॉरेन रिज़र्व कम होगा तो रुपया कमज़ोर होगा और अगर ये ज्यादा होगा तो रुपया मज़बूत होगा।
हाल की घटनाओं को देखें तो जहां सितंबर 2021 में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 642.45 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया था। वहीं, 24 जून 2022 आते-आते ये कम होकर 593.32 बिलियन डॉलर पर आ गया है। जिसके पीछे की सबसे अहम वजह महंगाई और क्रूड ऑयल की बढ़ती कीमतों को बताया जा रहा है। यही वजह है कि रुपए की वैल्यू गिरती जा रही है।
जब रुपया गिरता है तो इसका क्या असर होता है, समझिए आसान भाषा में
Dollar Rate Effect: अक्सर देखा जाता है कि लोग डॉलर के रेट को लेकर चिंता में रहते हैं. क्या आप जानते हैं कि आखिर जब डॉलर के सामने रुपया कमजोर होता है तो भारत पर कैसे असर पड़ता है.
अमेरिकन डॉलर के सामने भारत का रुपया लगातार गिरता जा रहा है. मंगलवार को अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले सात पैसे की गिरावट के साथ 82.37 प्रति डॉलर (अस्थायी) पर बंद हुआ. ऐसा पहली बार हो रहा है कि जब भारतीय करेंसी इतने निचले स्तर पर जा चुकी है. भारतीय करेंसी डॉलर के सामने लगातार गिरावट की ओर जा रही है. इन दिनों रुपये के कमजोर ना होने और डॉलर के ज्यादा मजबूत होने पर भी बहस चल रही है. ऐसे में सवाल है कि आखिर रुपया गिरता है तो इससे असर क्या होता है.
तो आज हम आपको बता रहे हैं कि जब भी पैसा गिरता है तो भारत में आम आदमी पर क्या असर होता है. साथ ही जानते हैं कि किस तरह से डॉलर और रुपये की वैल्यू लोगों को प्रभावित करती है….
वैसे भारत भी काफी चीजें विदेश में निवेश करता है, लेकिन भारत का आयात, भारत के निवेश से ज्यादा है. यानी हम सामान बेचते कम हैं, जबकि खरीदते ज्यादा हैं. ऐसे में हमारे पास डॉलर आता कम है और जाता ज्यादा है. यानी भारत में अरबों का माल डॉलर की कीमत के आधार पर खरीदा जाता है. इस वजह से भारत को डॉलर के एवज में ज्यादा देने होते हैं. अब जितना ज्यादा डॉलर की वैल्यू होगी, उतनी ही ज्यादा कीमत भारत को आयात सामान के लिए चुकानी होगी.
क्या है आयात-निर्यात का हिसाब?
अगर सितंबर के आयात-निर्यात के आंकड़े देखें तो भारत ने निर्यात कम किया है, जबकि आयात काफी ज्यादा है. आयात ज्यादा होने से भारत को व्यापार घाटा 1 लाख 24 हजार 740 करोड़ रुपये का हुआ. यानी जितने रुपये बेचने से आए, उससे ज्यादा पैसे दूसरे सामान खरीदने में लग गए. ऐसे में डॉलर की कीमत गिरने से भारत को नुकसान ही हो रहा है, क्योंकि व्यापार घाटा भारत का काफी ज्यादा है.
दुनिया में करीब 80 फीसदी व्यापार डॉलर में होता है. हर सामान के बनने में डॉलर का इस्तेमाल हुआ है. किसी ना किसी के सामान की प्रोसेस वो आइटम इस्तेमाल होता है, जो विदेश से आता है. इसका मतलब है कि उसके लिए ट्रेड डॉलर में ही किया होगा. सीधे शब्दों में कहें तो आपके काम में आने वाले अधिकतर सामान का संबंध डॉलर से होता है और उससे बनने तक ट्रेड डॉलर में हो रखा होता है. ऐसे में हर सामान पर डॉलर और भारती करेंसी की मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है? वैल्यू से असर पड़ता है. अगर डॉलर की वैल्यू ज्यादा है तो हमारे लिए सामान की कीमत ज्यादा हो जाएगी.
अब असर की बात करें तो यह साफ है कि जब भारत का खर्चा ज्यादा हो रहा है तो भारत के लिए यह गलत संकेत है, जिसका असर हर वर्ग पर पड़ता है. इसके साथ ही जो व्यापार आयात पर ज्यादा निर्भर करते हैं, उन व्यापार से जुड़े सामान भी डॉलर की कीमत बढ़ने पर बढ़ जाते हैं. लेकिन, भारत में अधिकतर सामान में आयात से जुड़ी चीजे शामिल हैं, जिससे कीमतें लगातार बढ़ती जाती हैं.
Rupees में कीमत कैसे घटती या बढ़ती है, Petrol और डीजल से इसका क्या है कनेक्शन?
डीएनए हिंदी: हर देश की अपनी एक करेंसी होती है. वैसे ही रुपया भी भारत की करेंसी है. रुपये के कमजोर होने या मजबूत होने की खबर अक्सर आपको सुनने में आता होगा, लेकिन इससे आपको क्या फायदा या नुकसान होता है? अगर नहीं जानते तो यहां हम आपके इन्हीं सवालों का बड़ी ही आसान भाषा में जवाब देंगे?
रुपये के कमजोर या मजबूत होने की वजह
रुपये की कीमत पूरी तरह इसकी डिमांड और सप्लाई पर डिपेंड करती है. इसपर इम्पोर्ट और एक्सपोर्ट का भी असर पड़ता है. बता दें हर देश के पास दूसरे देशों की मुद्रा का भंडार होता है जिससे वे एक दूसरे के साथ व्यापार करते हैं. आम बोलचाल भाषा में इसे ही विदेशी मुद्रा भंडार कहते हैं. समय-समय पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया इसके आंकड़े जारी करता रहता है. विदेशी मुद्रा के घटने या बढ़ने से ही उस देश की मुद्रा में वृद्धि या गिरावट देखने को मिलती है. बता दें कि अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी की अहमियत हासिल है. यानी कि ज्यादातर निर्यात की जाने वाली चीजों का पेमेंट अमेरिकी डॉलर में किया जाता है. यही कारण है कि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत से पता चलता है कि भारतीय मुद्रा कितना मजबूत या कमजोर है.
रुपये का पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर पड़ने का कनेक्शन
भारत अपनी जरुरत के मुताबिक 80 प्रतिशत पेट्रोलियम उत्पाद दूसरे देशों से आयात करता है. अब अगर रुपये की कीमत में गिरावट आती है तो पेट्रोलियम उत्पादों का आयात महंगा हो जाएगा. इस वजह से तेल कंपनियां पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ा देती हैं.
पेट्रोल डीजल के दाम पर असर
एक आंकड़े के मुताबिक डॉलर के भाव में एक रुपये की बढ़ोतरी होने से तेल कंपनियों पर 8 हजार करोड़ रुपये का भार पड़ता है जिसकी वजह से पेट्रोल-डीजल के दाम में मजबूरन बढ़ोतरी करनी पड़ती है. अगर पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में 10 प्रतिशत की वृद्धि होती है तो लगभग 0.8 प्रतिशत महंगाई बढ़ जाती है.
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