ब्रिटेन को आवश्यकतानुसार कच्चा माल उपलब्ध करवाने की दृष्टि से उपनिवेशवाद कि इस व्यवस्था का अपना अलग ही महत्व था। इसका लक्ष्य भारत को ब्रिटेन के एक अधीनस्थ बाज़ार के रूप में विकसित करना था जिससे इसका आसानी से शोषण किया जा सके। भारत को औधोगिक पूँजीवाद (Industrial Capitalism ) के अनुकूल बनाने के लिए स्थानीय शिल्प उधोगो को नष्ट कर एक कृषि प्रधान देश के रूप में परिवर्तन करना अंग्रेजों की एक सोची-समझी कार्यनीति का हिस्सा था।
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Pattern Trader से आरंभ करना
The Partition of Africa began in earnest with the Berlin Conference of 1884-1885, and was the cause of most of Africa’s borders today. Most notably there were no Africans present at this conference, nor were any Europeans present to ensure that native Africans had any say in the proceedings. The task of this conference was to ensure that each European country that claimed possession over a part of Africa must bring civilization, in the form of Christianity, and trade to each region that it would occupy. Specific lands were obtained by having African indigenous rulers sign an “x” to a general agreement for protection by a European power. Often these rulers had no idea what they were signing since most could not read, write, or understand European languages. Europeans moved into the African interior to extract raw materials such as rubber, palm oil, gold, copper, and diamonds. These natural resources made Africa a vital resource for the European economy.
आधुनिक Pattern Trader से आरंभ करना भारत का इतिहास
भारतीय अर्थव्यवस्था पर ब्रिटिश प्रभाव मुगल शासक औरंगजेब की मृत्यु के Pattern Trader से आरंभ करना बाद सहज ही परिलक्षित होने लगा था। मुगल शासकों द्वारा तत्कालीन यूरोपीय को दी गयी उदारतापूर्वक रियायतों ने स्वदेशी व्यापारियों के हितों को नुकसान पहुंचाया। Pattern Trader से आरंभ करना साथ ही, व्यापार और वाणिज्यिक व्यवस्था भी कमजोर पड़ती गयी। ऐसी स्थिति में यहाँ की घरेलू अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ना स्वाभाविक ही था।
अंग्रेजो Pattern Trader से आरंभ करना ने प्लासी (1757 ई.) और बक्सर (1764 ई.) के युद्धों के बाद बंगाल की समृद्धि पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। फलतः भारतीय अर्थव्यवस्था अधिशेष तथा आत्मनिर्भरतामूलक अर्थव्यवस्था से औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था में परिवर्तित हो गयी। प्लासी के युद्ध के बाद बंगाल के अंतर्देशीय व्यापार में अंग्रेजो की भागीदारी बढ़ गयी। कंपनी के कर्मचारियों ने व्यापार के लिए प्रतिबंधित वस्तुओं जैसे नमक, सुपारी और तंबाकू के व्यापार पर भी अधिकार कर लिया। बंगाल विजय से पूर्व, अंग्रेजी सरकार ने अपने कपड़ा उद्दोग के संरक्षण के लिए विविध प्रयास किए। इनमें भारत से आने वाले रंगीन तथा छपे हुए वस्त्रो के प्रयोग पर इंग्लैण्ड में प्रतिबंध आदि प्रमुख है। भारतीय अर्थव्यवस्था को ब्रिटिश औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था में परिवर्तित करने के पीछे ब्रिटिश सरकार का मुख्य उद्देश्य अपने उधोगो के लिए अच्छा व सस्ता माल प्राप्त करना और अपने उत्पादों को भारतीय बाजार में ऊंची कीमतों पर बेचना था।
भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद के विभिन्न चरण (Different Stages of British Colonialism in India)
उपनिवेशवाद एक ऐसी संरचना होती है, जिसके माध्यम से किसी भी देश का आर्थिक शोषण तथा उत्पीड़न होती है। इस संरचना के अंतर्गत कई प्रकार के विचार, व्यक्तित्वों और नीतियों का समावेश किया जा सकता है। यही वास्तव में उपनिवेशवादी नीति Pattern Trader से आरंभ करना का निर्णायक तत्व होता है। उपनिवेशवाद का मूल तत्व 'आर्थिक शोषण' में निहित होता है, लेकिन किसी उपनिवेश पर राजनीतिक कब्ज़ा बनाए रखने की दृष्टि से इसका भी अपना महत्व होता है।
कार्ल माकर्स के भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद और आर्थिक शोषण के जिन तीन चरणों वाले सिद्धांत को आधार बनाया है, वे निम्नवत है-
1. वाणिज्यिक चरण : 1757 ई. से 1813 ई.
2. औधोगिक मुक्त व्यापार : 1813 ई. से 1860 ई.
3. वित्तीय पूँजीवाद : 1860 ई. के Pattern Trader से आरंभ करना बाद की अवस्था
उपनिवेशवाद का प्रथम चरण : वाणिज्यिक चरण, 1757 - 1813 ई. (First Stage of Colonialism : Commercial Phase, 1757-1813)
इंग्लैण्ड की (ईस्ट इण्डिया कंपनी' ने प्लासी के युद्ध के बाद बंगाल पर अपना प्रभुत्व जमा लिया Pattern Trader से आरंभ करना था। इसी समय से भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद की स्थापना मानी जाती है अर्थात 1757 ई. से 18 वी शताब्दी के आरंभ तब जब कि Pattern Trader से आरंभ करना मुगल का पतन हो रहा है। इधर ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी कि साम्राज्यवादी मानसिकता स्पष्टतः पारिलक्षित होने लगी थी। उपनिवेशवाद के प्रथम चरण में अंग्रेजो का ध्यान 'आर्थिक लूट' पर ही क्रेंद्रित रहा। कंपनी भारत के साथ व्यापार पर अपना वर्चस्व चाहती थी जिससे कि उसके साथ प्रतिस्पर्धा करने वाला कोई अन्य ब्रिटिश अथवा यूरोपीय व्यापारी या व्यापारिक कंपनी न हो। यूरोप के अन्य राष्ट्रों को भारत से दूर रखने के लिए कंपनी को फ्रांसीसियों तथा डचों के साथ भीषण लड़ाइयाँ लड़नी पड़ी। आरंभ में बंबई, कलकत्ता और मद्रास के जिन समुद्री क्षेत्रों पर कंपनी का नियंत्रण था, वहाँ की जनता पर कंपनी ने स्थानीय कर लगाने शुरू कर दिए और अपने खजाने को बढ़ाने की कोशिश की। शीघ्र ही कंपनी की यह अभिलाषा पूर्ण हो गई और प्लासी के युद्ध के बाद बंगाल, बिहार और दक्षिण भारत के कुछ हिस्से कंपनी के अधीन आ गए। परिणामतः जीते गए क्षेत्रों की सरकारी आय पर कंपनी का पूरा नियंत्रण स्थापित हो गया। जमींदारों, नवाबों और स्थानीय शासकों कि जमा पूँजी हड़पने में यह नियंत्रण अत्यधिक कारगर सिद्ध हुआ।
उपनिवेशवाद का तृतीय चरण : वित्तीय पूँजीवाद (1860 ई. के पश्चात) (Third Stage of Colonialism : Financial Capitalism – After 1860)
औधोगिक विकास एवं Pattern Trader से आरंभ करना औपनिवेशिक बाजारों के शोषण के परिणामस्वरूप ब्रिटेन में बड़ी पूँजी जमा हो गई। उधोगपतियो की बढ़ती हुई संपत्ति के फलस्वरूप मजदूर वर्ग को संगठित होने कि प्रेरणा मिली। इंग्लैंड में और अधिक औधोगीकरण का अर्थ था मजदूरों की सौँदबाजी में वृद्धि होना तथा पूंजीपतियों के मुनाफे पर विपरीत असर पड़ना क्योकि यह वही समय था जब माकर्स एवं एंजिल्स का 'द कम्युनिस्ट मैनीफेस्टो' अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित हो चुका था। अतः पूँजी को भारत में निवेश करना उचित समझा गया। इसी स्थिति को पूँजीवाद के तृतीय चरण के आरंभ के रूप में माना जाता है।
अपनी व्यावसायिक एवं प्रशासनिक आवश्यकताओ की पूर्ति के लिए ब्रिटिश सरकार रेल लाइनो का विकास आवश्यक मानती थी। रेल निर्माण कि दिशा में भारत में प्रथम प्रयास 1846 ई. में लॉर्ड डलहौजी ने किया। प्रथम रेलवे लाइन 1853 ई. में बंबई तथा थाणे के बीच बिछायी गयीं। वैसे भारत में रेलवे लाइन का सर्वधिक विस्तार Pattern Trader से आरंभ करना लॉर्ड कर्जन के समय में हुआ। अंग्रेजों द्वारा वाणिज्यिक और सामरिक उदेश्यो से भारत में बिछायी गयीं रेल को कार्ल माकर्स 'आधुनिक युग के अग्रदूत' की संज्ञा दी। रेल निर्माण के क्षेत्र में विनियोजित पूँजी वित्त प्रणाली कि विशेषता को दर्शाती है, जिसे गारंटी प्रणाली कहा गया। अंग्रेजों ने सूती मिलों एवं इस्पात की फक्ट्रियों में पूँजी का विनियोग नहीं किया। वे अपने देश के उधोगो के साथ प्रतियोगिता में नहीं आना चाहते थे। रेल निर्माण के बाद जिनके विकास से सर्वाधिक पूँजी लगी, वे थे - चाय, कॉफी, रबर, नील आदि के बागान । भारत के विशाल बाज़ार पर कब्जा करने के लिए भारत में ही उधोगो की स्थापना के महत्व से उधोग्यपति परिचित थे। ऋण की राशि 1857 ई. में जहाँ 7 करोड़ Pattern Trader से आरंभ करना पाउण्ड थी, 1939 ई. में बढ़कर 88 करोड़ 42 लाख पाउण्ड हो गई थी। इस पर ब्याज तथा लाभांश भी भारत को ही देना पड़ता था।
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