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विदेशी मुद्रा भंडार | वर्तमान में भारत का विदेशी कोष भंडार
विदेशी मुद्रा भंडार का उद्देश्य केंद्रीय बैंक द्वारा विदेशी मुद्रा में आरक्षित संपत्ति से होता है। जिसमें बांड (Bonds), ट्रेजरी बिल व अन्य सरकारी प्रतिभूतियां शामिल होती हैं। अधिकांश विदेशी मुद्रा भंडार अमेरिकी डॉलर में आरक्षित किए जाते हैं। भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में निम्नलिखित संपत्तियों को शामिल किया जाता है।
- स्वर्ण,
- विशेष आहरण अधिकार (SDR),
- अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के पास रिजर्व ट्रेंच,
- विदेशी मुद्रा परिसम्पत्तियां
विदेशी मुद्रा भंडार का प्रमुख उद्देश्य :
- मौद्रिक और विनिमय दर प्रबंधन हेतु निर्मित नीतियों के प्रति समर्थन व विश्वास बनाए रखना।
- संकट के समय या जब उधार लेने की क्षमता कमजोर हो जाती है तो संकट के समाधान के लिए विदेशी मुद्रा तरलता को बनाए रखते हुए भारी प्रभाव को सीमित करता है।
- यह राष्ट्रीय या संघ मुद्रा के समर्थन में हस्तक्षेप करने की क्षमता प्रदान करता है।
विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves) में हो रही बढ़ोतरी भारत के बाहरी और आंतरिक वित्तीय मुद्दों के प्रबंधन में सरकार तथा रिजर्व बैंक को बेहतर स्थिति प्रदान करती है। यह आर्थिक मोर्चे पर भुगतान क्या होता है विदेशी मुद्रा बॉन्ड संतुलन संकट की स्थिति से निपटने में मदद करता है। बढ़ते भंडार ने डॉलर के मुकाबले रुपए को मजबूत करने में मदद की है। विदेशी मुद्रा भंडार बाजार में भंडार बाजारों और निवेशकों को विश्वास का एक स्तर प्रदान करता है, जिससे एक देश अपने बाहरी दायित्वों को पूरा कर सकता है।
क्या होता है विदेशी मुद्रा बॉन्ड
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'रुपये की स्थिरता विदेशी मुद्रा भंडार पर निर्भर'
बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच (बीओए-एमएल) ने कहा, हमारे हिसाब से डॉलर के मुकाबले रुपया 58 से 62 के स्तर पर रह सकता है। विदेशी कोष 22 मई से लगातार बांड तथा शेयर बाजार से पैसा निकाल रहे हैं। इससे देश का विदेशी मुद्रा भंडार घटा है और यह इतना रह गया है, जिससे सात महीने का आयात पूरा हो सके।
विदेशी संस्थागत निवेशकों ने उस समय से अब तक 65,000 करोड़ रुपये घरेलू बाजार से निकाल लिए हैं। 6 अगस्त को कारोबार के दौरान डॉलर के मुकाबले रपया 61.80 रुपये प्रति डॉलर के स्तर पर चला गया था और बाद में 61.30 पर बंद हुआ। चालू वित्तवर्ष में अब तक रुपया 12 प्रतिशत से अधिक नीचे आ चुका है। रिपोर्ट में कहा गया है, जब तक रिजर्व बैंक के पास विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति नहीं सुधरेगी, रुपया स्थिर नहीं होगा. ।
बीओए-एमएल ने उम्मीद जताई कि सरकार तथा रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने के लिए अगले सप्ताह कुछ नीतिगत उपायों की घोषणा कर सकते हैं। बाह्य वाणिज्यिक उधारी (ईसीबी) को उदार बनाने, एफसीएनआरबी जमा दरों को बढ़ाने तथा सार्वजनिक उपक्रमों के बांड जारी किए जाने से 5 से 10 अरब डॉलर जुटाए जा सकते हैं।
फॉरेन करेंसी सॉवरेन बांड होता क्या है जिस पर मचा है इतना बवाल
वित्त मंत्रालय से सुभाष चंद्र गर्ग (Subhash Chandra Garg) की विदाई के बाद तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. वित्त सचिव का पद हाई प्रोफाइल माना जाता है. देश से जुड़े तमाम आर्थिक नीतियों के निर्धारण में इसकी भूमिका होती है. यहां से हटाकर गर्ग को ऊर्जा मंत्रालय का सचिव बनाया गया. उन्होंने अगले ही दिन रिटायरमेंट के लिए आवेदन कर दिया. चर्चा है कि बजट में घोषित फॉरेन करेंसी सोवरेन बांड (Foreign currency sovereign bond ) के प्रस्ताव के पीछे उनका दिमाग था. उस प्रस्ताव की अब आलोचना हो रही है. संघ के संगठन स्वदेशी जागरण मंच ने भी इसका विरोध किया है.
दरअसल भारत ने पिछले 70 वर्षों में कभी भी इस तरह के बांड जारी नहीं किए. बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ( Nirmala Sitharaman ) ने कहा कि सरकार पैसा जुटाने के लिए ये कदम उठा रही है. तर्क ये है कि देसी बांड बाजार से सारा पैसा सरकार ही ले लेती है. निजी क्षेत्र को फायदा नहीं मिलता है. सीतारमण ने तर्क दिया कि बाहरी कर्ज और जीडीपी का अनुपात पांच फीसदी से क्या होता है विदेशी मुद्रा बॉन्ड कम है, इसलिए विदेशी बाजार में विदेशी मुद्रा में सार्वभौम बांड जारी करने में कोई दिक्कत नहीं है.
आखिर फॉरेन करेंसी सोवरेन बांड होता क्या हैं ?
ये किसी और बांड की तरह ही होता है. बांड एक निश्चित अवधि के लिए जारी होते हैं. खरीदार को निवेशित पैसे पर एक निश्चित दर पर ब्याज मिलता है. सॉवरेन बांड की विश्वसनीयता, मूल धन और ब्याज की गारंटी सरकार की होती है. बांड विदेशी मुद्रा यानी डॉलर में भी जारी होते हैं. इसे रुपए यानी होम करेंसी में भी जारी किया जा सकता है.
विकास की योजनाओं को पूरा करने और अन्य खर्चे चलाने के लिए सरकार बांड जारी करती है. पैसा जुटाने का एक तरीका टैक्स रेट बढ़ाना भी है लेकिन इससे सरकार की लोकप्रियता क्या होता है विदेशी मुद्रा बॉन्ड पर असर पड़ता है. खबरों के मुताबिक बजट में की गई घोषणा के बाद अक्टूबर में ही सरकार 10 अरब डॉलर जुटाने की योजना बना रही थी.
बांड का यील्ड यानी ब्याज दर कैसे तय होता है ?
ये देश की माली हालत पर निर्भर करता है. जिस देश में घाटा कम है, विश्वसनीयता अच्छी है, रेटिंग एजेंसियों से अच्छी रेटिंग मिली हो वहां का बांड काफी सेक्योर माना जाता है. हालांकि ब्याज दर कम होती है. दूसरी ओर जिस देश में अस्थिरता है. आंतरिक संकट है. किसी कीमत पर पैसे की जरूरत है. वो ज्यादा ब्याज दर का वादा कर बाजार से पैसा उठाते हैं. हालांकि मैच्योरिटी के बाद मूलधन क्या होता है विदेशी मुद्रा बॉन्ड या पूरा ब्याज मिलने में जोखिम भी हो सकता है. कई देश तो डिफॉल्ट भी कर चुके हैं. इसलिए निवेशक सोच समझ कर पैसा लगाता है. ब्याज दर भले कम हो लेकिन रेटिंग ठीक हो , वही अच्छा माना जाता है.
विदेशी मुद्रा में बांड जारी करने के कई खतरे भी होते हैं. जैसे अगर किसी कारण से देश की करेंसी रुपए का रेट डॉलर के मुकाबले घट जाए तो सरकार की देनदारी बढ़ जाएगी. स्वदेशी जागरण मंच ने इसी को आधार बनाकर विदेशी मुद्रा में अंतरराष्ट्रीय बाजार में बांड जारी नहीं करने को कहा है.
देश का विदेशी मुद्रा भंडार रेकॉर्ड ऊंचाई पर, 1.013 अरब डॉलर बढ़कर 610.012 अरब डॉलर पहुंचा
विदेशी मुद्रा में सुधार से देश की अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी। (फोटो- इंडियन एक्सप्रेस)
देश का विदेशी मुद्रा भंडार 2 जुलाई, 2021 को समाप्त सप्ताह में 1.013 अरब डॉलर बढ़कर 610.012 अरब डॉलर की रेकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया। भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़े के मुताबिक 25 जून को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 5.066 अरब डॉलर बढ़कर 608.999 अरब डॉलर हो गया था।
रिजर्व बैंक के साप्ताहिक आंकड़े के मुताबिक समीक्षाधीन सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि की वजह विदेशी मुद्रा संपत्तियों (एफसीए) में हुई बढ़ोतरी है जो समग्र भंडार का प्रमुख घटक है। इस दौरान एफसीए 74.8 करोड़ डॉलर की वृद्धि के साथ 566.988 अरब डॉलर हो गया। डॉलर में बताई जाने वाली विदेशी मुद्रा संपत्तियों में विदेशी मुद्रा भंडार में रखी यूरो, पाउंड और येन जैसी दूसरी विदेशी मुद्राओं के मूल्य में वृद्धि या कमी का प्रभाव भी शामिल होता है।
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